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________________ 471 कलश ४२ इसप्रकार वर्णादि सहित मूर्तिक और वर्णादि रहित अमूर्तिक अजीव दो प्रकार का है। इसलिए अमूर्तत्व के आधार पर अर्थात् अमूर्तत्व को जीव का लक्षण मानकर जीव के स्वरूप को यथार्थ नहीं जाना जा सकता। अतः वस्तुस्वरूप के विवेचक भेदज्ञानियों ने अच्छी तरह परीक्षा करके, अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से रहित जीव का लक्षण चेतनत्व को कहा है। वह चेतनत्व लक्षण स्वयं प्रगट है और जीव के यथार्थ स्वरूप को प्रगट करने में पूर्ण समर्थ है । अत: हे जगत के जीवो! इस अचल एक चैतन्यलक्षण का ही अवलम्बन करो । उपयोग लक्षण को आत्मा का निर्दोष लक्षण सिद्ध करने वाले इस छन्द का भावानुवाद कविवर बनारसीदासजी नाटक समयसार में इसप्रकार करते हैं * - ( सवैया इकतीसा ) रूप- रसवंत मूरतीक एक पुदगल, रूप बिनु औरु यौं अजीव दर्व दुधा है। चारि हैं अमूरतीक जीव भी अमूरतीक, याही तैं अमूरतीक - वस्तु ध्यान मुधा है । और सौं न कबहूं प्रगट आप आपुही सौं, ऐसौ थिर चेतन - सुभाउ सुद्ध सुधा है । चेतन को अनुभौ अराधें जग तेई जीव, जिन्हकौं अखंड रस चाखिवे की छुधा है ॥ ११ ॥ रूपरसवाला पुद्गल एकमात्र ही मूर्तिक है और शेष सभी पाँच द्रव्य अरूपी अमूर्तिक हैं । इसप्रकार अजीव द्रव्य मूर्तिक और अमूर्तिक के भेद से दो प्रकार का है। अजीव द्रव्यों में भी पुद्गल को छोड़कर चार द्रव्य अमूर्तिक हैं और जीव भी अमूर्तिक है। इसकारण अमूर्तिक पदार्थ ध्यान के ध्येय नहीं बन सकते । अपने में स्थिर चेतनस्वभावरूपी अमृत अपने आप से ही प्रगट है । अतः जिनकों आत्मा के अखण्ड अतीन्द्रिय रस चखने की भूख हो; वे चेतन आत्मा का अनुभव करें, आत्मा की आराधना करें ।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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