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________________ समयसार अनुशीलन 396 जिस नय के कथन का जितना वजन होता है, उसकी अपेक्षा समझकर हमारी दृष्टि में उस नय का ठीक उतना ही वजन आना चाहिए, तभी हमारी दृष्टि निर्मल होगी; समझ व्यवस्थित होगी, सही होगी। प्रश्न - यह वजन क्या है? क्या नयों में भी वजन होता है? उत्तर –होता है, क्यों नहीं होता? जब हमारी बात में वजन होता है तो नयों का कथन भी तो बात ही है, उसमें वजन क्यों नहीं होगा? ___ जब वक्ता की प्रामाणिकता के आधार पर उनकी बात में वजन होता है, छोटे-बड़े वक्ता की बात में वजन का अन्तर होता है तो नयों की बात में भी वजन का अन्तर क्यों नहीं होगा? यदि वजन की बात को विशेष समझना है तो परमभावप्रकाशक नयचक्र के पृष्ठ १२२ से १२५ तक देखना चाहिए। - इसप्रकार उक्त सम्पूर्ण प्रकरण से एक बात सिद्ध हो गई कि जिन्हें व्यवहार से जीव कहा गया है, वे अध्यवसानादि आठ प्रकार के भाव परमार्थजीव नहीं है। ___ अब सहज ही प्रश्न उठता है कि यदि अध्यवसानादि भाव परमार्थजीव नहीं है तो फिर परमार्थजीव क्या है? इस प्रश्न का उत्तर अगली गाथा में दिया जाएगा। इन देहादिपरपदार्थों से भिन्न निज भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित होना ही एक अभूतपूर्व अद्भुत क्रान्ति है, धर्म का आरम्भ है, सम्यग्दर्शन है, सम्यग्ज्ञान है, सम्यक्चारित्र है, साक्षात् मोक्ष का मार्ग है, भगवान बनने, समस्त दु:खों को दूर करने और अनन्त अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है । - आत्मा ही है शरण, पृष्ठ ५१
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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