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________________ 363 कलश ३३ ___ त्यागी, कृतज्ञ, कुलीन. लक्ष्मीवान, लोगों के अनुराग का पात्र; रूप, यौवन और उत्साह से युक्त; तेजस्वी, चतुर और शीलवान पुरुष काव्यों और नाटकों का नायक होता है। धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित और धीरप्रशान्त – ये नायक के प्रथम चार भेद हैं। क्षमाशील, अतिगंभीर स्वभाववाला, अपनी प्रशंसा नहीं करनेवाला, महासत्त्व अर्थात् हर्ष-शोकादि से अपने स्वभाव को नहीं बदलनेवाला, स्थिरप्रकृति, विनय से युक्त गौरववान, दृढव्रती, अपनी बात का पक्का और आन-वानवाला पुरुष धीरोदात्त नायक कहलाता है। जैसे कि श्रीराम, युधिष्ठिर आदि। ___ मायावी, प्रचण्ड, चपल, घमण्डी, शूर, अपनी प्रशंसा के पुल बांधनेवाला पुरुष धीरोद्धत्त नायक कहलाता है। जैसे - रावण, भीमसेन आदि। निश्चित, अतिकोमलस्वभाववाला, सदा नृत्य-गीतादि कलाओं में लीन पुरुष धीरललित नायक कहलाता है। जैसे - रत्नावली नाटिका में वत्सराज आदि। त्यागी, कृतज्ञ, कुलीन, सम्पन्न लोगों से सम्मान्य, तेजस्वी, चतुर और शीलवान संस्कारों से सम्पन्न द्विजादिक पुरुष धीरप्रशान्त नायक कहे जाते हैं। जैसे - भगवान महावीर, बुद्ध आदि।" इसीप्रकार के भाव महाकवि धनन्जय विरचित दशरूपक के द्वितीय प्रकाश में भी प्राप्त होते हैं । नायक के उक्त प्रकारों में धीरोदात्त नायक ही सर्वश्रेष्ठ नायक होता है । यद्यपि धीरप्रशान्त भी अच्छा ही होता है; पर उसकी प्रशान्तता उसे संघर्ष में प्रवृत्त नहीं होने देती। जब किसी संघर्ष में विजय प्राप्त करना हो तो वहाँ धीरोदात्तता ही बलवती सिद्ध होती है।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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