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________________ 315 भी सम्यक तो चौथे गुणस्थान में हो जाता है, पर उसकी पूर्णता तेरहवें गुणस्थान में होती है; क्योंकि क्षायिकज्ञान की प्राप्ति केवलज्ञान की प्राप्ति, सर्वज्ञता की प्राप्ति तेरहवें गुणस्थान में होती है। इसीप्रकार सम्यक् चारित्र की पूर्णता बारहवें गुणस्थान में होती है; क्योंकि पूर्ण वीतरागता वहीं प्रगट होती है । चारित्रमाहनीय का नाश दशवें गुणस्थान के अन्त में होता है और उसके बाद तत्काल वारहवें गुणस्थान में क्षायिकचारित्र प्रगट हो जाता है । F इसप्रकार सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इनकी उत्पत्ति, इनका आरंभ तो एकसाथ होता है; पर पूर्णता में कालभेद पड़ता है। प्रश्न - यहाँ तो आप कह रहे हैं कि जानने और त्यागने में कालभेद नहीं है और आत्मख्याति में कहा था कि जो पहले जानता हैं, वही बाद में त्याग करता है। इन दोनों कथनों में परस्पर विरोध क्यों है ? गाथा ३४.३५ उत्तर - कोई विरोध नहीं है; क्योंकि जिस समय पर से भिन्नता का ज्ञान होता है, उसी समय त्यागभाव भी आ जाता है । यहाँ कारणकार्य संबंध बताने के लिए ही ऐसा कहा है कि जो पहले जानता है, वही बाद में त्याग करता है । - - इसीप्रकार का प्रश्न उठाकर स्वामीजी उसका समाधान इसप्रकार करते हैं - "प्रश्न जो पहले जानता है, वही बाद में त्याग करता है; दूसरा कोई त्यागनेवाला नहीं है । इसका क्या अर्थ है ? १. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग - २, उत्तर - ज्ञानस्वभाव में विभाव या विकल्प व्यापने योग्य नहीं है • ऐसा जाननेवाला ज्ञातापुरुष विभावरूप नहीं परिणमता, तब उसे ही राग को त्यागनेवाला कहा जाता है ।" पृष्ठ ८१
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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