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________________ 273 गाथा २८ २९ सफेद खून वाला कहकर स्तुति करना, मात्र व्यवहार स्तुति ही है । परमार्थ से विचार करें तो लाल सफेद होना या सफेद खूनवाला होना तीर्थंकर केवली का स्वभाव नहीं है। इसलिए निश्चय से शरीर के स्तवन से आत्मा का स्तवन नहीं होता । - I जिसप्रकार चाँदी की सफेदी का सांने में अभाव होने से निश्चय से सफेद सोना कहना उचित नहीं है, सोना तो पीला ही होता है; अतः सोने को पीला कहना ही सही है । इसीप्रकार शरीर के गुणों का केवली में अभाव होने से श्वेत- लाल कहने से अथवा सफेद खूनवाले कहने से केवली का स्तवन नहीं होता; केवली के गुणों के स्तवन करने से ही केवली का स्तवन होता है । " यहाँ एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि तीर्थंकर केवली के शारीरिक गुणों के सन्दर्भ में आत्मख्याति टीका में 'शुक्ललोहित' शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ टीकाकारों ने या तो सफेद और लाल रंग किया है या कि शुक्लरक्त लिखकर छोड़ दिया है । चूंकि दो तीर्थंकर सफेद रंग के हैं और दो लाल के; अत: यह अर्थ भी ठीक ही है । यद्यपि उक्त अर्थ में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है; तथापि 'शुक्ललोहित' शब्द का अर्थ सफेद खून भी होता है, जो अरहंत के ४६ गुणों में आता है, जन्म के दश अतिशयों में आता है; अतः भगवान की स्तुति के रूप में यह अर्थ अधिक वजनदार हो सकता है । एक तो यह चौबीसों ही तीर्थंकरों में घटित हो सकता है और दूसरे सफेद-लाल रंग तो अन्य सामान्य पुरुषों के भी हो सकते हैं, पर सफेद खून का होना तो तीर्थंकरों के शरीर की असाधारण विशेषता है । यह विचारकर मैंने यहाँ दोनों अर्थों को स्थान दिया है। प्रथम स्थान तो परम्परागत अर्थ को ही दिया है, पर अथवा के रूप में सफेद खून वाला अर्थ भी दिया है।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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