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________________ 214 समयसार अनुशीलन कह गई। बुरा क्यों मानते हो ? जरा सोचो तो सही, इसमें क्या बुरी बात है? तुम सर्वप्रकार समर्थ हो, बना लो न अपना घर ।' चिड़िया अपनी बात पूरी न कर पाई थी कि बन्दर ने गुस्से में आकर उसका घोंसला छिन्न-भिन्न कर दिया, तोड़ कर फेंक दिया और बोला - ___ 'बड़ी आई दया दिखाने वाली। अब दिखा दया, अब तो तू भी हमारे समान ही बेघर हो गई। बोल, अब बोल; अब क्या कहना है तुझे ? और भी कोई उपदेश शेष हो तो वह भी दे ले।' बेचारी चिड़िया चुप रह गई। करती भी क्या ? यदि हम दूसरों को सुधारने के विकल्प में अधिक उलझे तो हमारी दशा भी चिड़िया के समान ही हो सकती है। अत: समझदारी इसी में है कि हम अपने कल्याण की ही सोचें। जो लोग सत्य समझना चाहते हों, विनयवंत हों, सरल हृदय हों; उनके अनुरोध पर जो कुछ सत्य जानते हों, अवश्य बताना, समझाना; पर जो लोग सुनना ही न चाहें, समझना ही न चाहें; उन्हें समझाने के विकल्प में समय व शक्ति व्यर्थ गंवाना ठीक नहीं है।" १६वीं गाथा की व्याख्या आत्मख्याति में इसप्रकार की गई है - "यह आत्मा जिस भाव से साध्य तथा साधन हो, उस भाव से ही नित्य सेवन करने योग्य है, उपासना करने योग्य है। इसप्रकार स्वयं विचार करके दूसरों को व्यवहार से समझाते हैं कि साधुपुरुष को दर्शन-ज्ञान-चारित्र सदा सेवन करने योग्य है, सदा उपासना करने योग्य है; किन्तु परमार्थ से देखा जाय तो ये तीनों एक आत्मा ही हैं, आत्मा की ही पर्यायें हैं; अन्यवस्तु नहीं हैं। __ जिसप्रकार देवदत्त नामक पुरुष के ज्ञान, दर्शन और आचरण, देवदत्त के स्वभाव का उल्लघंन न करने से देवदत्त ही हैं; अन्य वस्तु १. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, पृष्ठ ५१
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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