SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार अनुशीलन 202 (रोला ) खारेपन से भरी हुई ज्यों नमक डली है। ज्ञानभाव से भरा हुआ त्यों निज आतम है। अन्तर-बाहर प्रगट तेजमय सहज अनाकुल। जो अखण्ड चिन्मय चिद्घन वह हमें प्राप्त हो॥१४॥ जिसप्रकार नमक की डली खारेपन से लबालब भरी हुई है, उसीप्रकार आत्मा ज्ञानरस से लबालब भरा हुआ है। वह ज्ञेयों के आकाररूप में खण्डित नहीं होता, इसलिए अखण्डित है; अनाकुल है, अविनाशीरूप से अन्तर में दैदीप्यमान है, सहजरूप से सदा विलसित हो रहा है और चैतन्य के परिणमन से परिपूर्ण है; ऐसा उत्कृष्ट तेजोमय आत्मा हमें प्राप्त हो। इस कलश का भावानुवाद कविवर पंडित बनारसीदासजी नाटक समयसार में इसप्रकार करते हैं - ( सवैया इकतीसा ) अपनैं ही गुन परजाय सौं प्रवाहरूप, परिनयौ तिहूं काल अपनै अधार सौं। अन्तर-बाहर-परकासवान एकरस, खिन्नता न गहै भिन्न रहै भौ-विकारसौं। चेतना के रस सरवंग भरि रह्यौ जीव, जैसे लौन-कांकर भर्यो है रस खार सौं। पूरन-सुरूप अति उज्ज्वल विग्नानघन, मो कौं होहु प्रगट विसेस निरवार सौं॥१५॥ स्वयं के आधार से तीनोंकाल स्वयं के ही गुण-पर्याय में प्रवाह रूप से परिणमित, अन्तर-बाह्य में प्रकाशमान, खिन्नता से रहित और भवविकार से भिन्न यह भगवान आत्मा चेतना के रस से इसप्रकार सर्वांग सरावोर एक रस हो रहा है कि जिसप्रकार नमक की डली खारे
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy