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________________ समयसार अनुशीलन समयसार अर्थात् भगवान आत्मा भावस्वरूप है, सत्तारूप है, अस्तित्वरूप है, सत् है; और सत् द्रव्य का लक्षण है। जैसाकि तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है - "सद् द्रव्यलक्षणम्' = द्रव्य का लक्षण सत् है ।" इसप्रकार 'भाव' विशेषण के माध्यम से सर्वप्रथम भगवान आत्मा के द्रव्यस्वभाव को बताया गया है, उसके अस्तित्व की स्थापना की है; क्योंकि जगत में जिसका अस्तित्व ही न हो, उसका गुणानुवाद बंध्यासुतविवाहवर्णन के समान ही काल्पनिक सिद्ध होगा । ___छह द्रव्यों के समूह का नाम ही लोक है। इस लोक में छह द्रव्यों के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। यदि भगवान आत्मा का द्रव्यत्व ही सिद्ध न हो तो उसका अस्तित्व ही सिद्ध न होगा और अस्तित्व सिद्ध हुए बिना उसकी चर्चा ही सम्भव नहीं है। अत: उसकी चर्चा आरम्भ करने के पहले उसके अस्तित्व को सिद्ध करना आवश्यक ही है। यही कारण है कि मंगलाचरण में सर्वप्रथम भगवान आत्मा के अस्तित्व की स्थापना की गई है। इसके माध्यम से आत्मा का अस्तित्व ही न माननेवाले नास्तिकों के मत का निराकरण भी सहजभाव से हो गया है। 'वह सत्तास्वरूप भगवान आत्मा चैतन्यभावी है' - ऐसा कहकर भगवान आत्मा के स्वभाव को स्पष्ट किया गया है। वह भगवान आत्मा ज्ञान-दर्शन आदि अनन्तगुणों का अखण्ड पिण्ड है - यह कहने से भगवान आत्मा को सर्वथा निर्गुण माननेवालों का तो निराकरण हो ही गया, साथ में उस भगवान आत्मा की पहिचान का चिन्ह भी स्पष्ट हो गया। उक्त कथन से यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो गई कि भगवान आत्मा जानने-देखने के स्वभाव वाला है। जानना-देखना उसका सहज स्वभाव है, असाधारण भाव है; जो आत्माओं में ही पाया जाता है, १. आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५ सूत्र २९
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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