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________________ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या आगम में इसप्रकार के दुहरे कथन भी किये गये हैं ? इसके उत्तर में पण्डितजी कहते हैं कि स्थूलता और सूक्ष्मता के भेद से कथन दो प्रकार के होते हैं। आगम में इसप्रकार के बहुत कथन प्राप्त हैं, जिनमें स्थूलता और सूक्ष्मता की अपेक्षा बहुत अन्तर दिखाई देता है। एक ओर तो छठवें गुणस्थान में ब्रह्मचर्य महाव्रत कहा और दूसरी ओर मैथुनसंज्ञा नौवें गुणस्थान तक कही । १०४ नौवें गुणस्थान तक मैथुन संज्ञा होने की स्थिति में पूर्ण ब्रह्मचर्यरूप ब्रह्मचर्य महाव्रत कैसे हो सकता है ? इस प्रश्न का एकमात्र उत्तर यही हो सकता है कि छठवें गुणस्थान में महाव्रत कहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य कहना स्थूल कथन है और मैथुन संज्ञा नौवें गुणस्थान तक कहना सूक्ष्म कथन है। उसी प्रकार यहाँ अनुभव के काल में पर को नहीं जानना और निर्विकल्पता कहना स्थूल कथन है और पृथक्त्ववितर्क शुक्लध्यान में पर को जानना और कषायों के रूप में विकल्पों का सद्भाव दशवें गुणस्थान तक कहना सूक्ष्म कथन है। यह तो आप जानते ही हैं कि स्थूल कथन अर्थात् सामान्य कथन से सूक्ष्म कथन अर्थात् विशेष कथन बलवान होता है। कहा भी है सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेषो बलवान भवेत् । निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत्खरविषाणवत् । सामान्य कथन से विशेष कथन बलवान होता है और विशेष से रहित सामान्य गधे के सींग के समान है। तात्पर्य यह है कि विशेष से रहित सामान्य का जगत में अस्तित्त्व ही नहीं है। कौन-सा कथन स्थूल है और कौन-सा सूक्ष्म ह्न इस संदर्भ में भी अनेक प्रकार की बातें चलती हैं; यही कारण है कि यहाँ पण्डितजी उनको भी स्पष्ट कर देते हैं। उनके अनुसार छद्मस्थ को भी जानने व १. मोक्षमार्गप्रकाशक, २०२ पेज पर उद्धृत २. आलापपद्धति, श्लोक ९ सातवाँ प्रवचन १०५ स्थूल कथन हैं और मात्र केवली के ज्ञान में आनेवाले कथन सूक्ष्म कथन हैं। उक्त सूक्ष्म कथनों को छद्मस्थ लोग केवली के कथनानुसार जानते हैं। अगले प्रश्न और उनके उत्तर देते हुए पण्डितजी लिखते हैं ह्र “तथा भाईजी, तुमने तीन दृष्टान्त लिखे व दृष्टान्त में प्रश्न लिखा, सो दृष्टान्त सर्वांग मिलता नहीं है । दृष्टान्त है वह एक प्रयोजन को बतलाता है; सो यहाँ द्वितीया का विधु (चन्द्रमा), जलविन्दु, अग्निकणिका ह्र यह तो एकदेश है और पूर्णमासी का चन्द्र, महासागर तथा अग्निकुण्ड ह्न यह सर्वदेश हैं। उसीप्रकार चौथे गुणस्थान में आत्मा के ज्ञानादिगुण एकदेश प्रगट हुए हैं, तेरहवें गुणस्थान में आत्मा के ज्ञानादिक गुण सर्वथा प्रगट होते हैं और जैसे दृष्टान्तों की एक जाति है, वैसे ही जितने व्रत-अव्रतसम्यग्दृष्टि के प्रगट हुए हैं, उनकी और तेरहवें गुणस्थान में जो 'गुण प्रगट होते हैं उनकी एक जाति है । वहाँ तुमने प्रश्न लिखा था कि एक जाति है तो जिसप्रकार केवली सर्व ज्ञेयों को प्रत्यक्ष जानते हैं; उसीप्रकार चौथे गुणस्थानवाला भी आत्मा को प्रत्यक्ष जानता होगा ? उत्तर भाईजी, प्रत्यक्षता की अपेक्षा एक जाति नहीं है, सम्यग्ज्ञान की अपेक्षा एक जाति है। चौथे गुणस्थानवाले को मति श्रुतरूप सम्यग्ज्ञान है और तेरहवें गुणस्थानवाले को केवलरूप सम्यग्ज्ञान है। तथा एकदेश सर्वदेश का अन्तर तो इतना ही है कि मति श्रुतज्ञान वाला अमूर्तिक वस्तु को अप्रत्यक्ष और मूर्तिक वस्तु को भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष, किंचित् अनुक्रम से जानता है तथा सर्वथा सर्व वस्तु को केवलज्ञान युगपत् जानता है। वह परोक्ष जानता है, यह प्रत्यक्ष जानता है ह्र इतना ही विशेष है। और सर्वप्रकार एक ही जाति कहें तो जिसप्रकार केवली युगपत् प्रत्यक्ष अप्रयोजनरूप ज्ञेय को निर्विकल्परूप जानते हैं; उसीप्रकार यह भी जाने ह्र ऐसा तो है नहीं; इसलिए प्रत्यक्ष-परोक्ष का विशेष जानना । उक्तं च अष्टसहस्री मध्ये ह्र
SR No.009470
Book TitleRahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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