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________________ रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का प्रश्न ह यदि कोई जैनाभास तीव्रकषायी होकर असत्यार्थ पदों को जैन शास्त्रों में मिलाये और फिर उसकी परम्परा चलती रहे तो क्या किया जाय ? उत्तर ह्र जैसे कोई सच्चे मोतियों के गहने में झूठे मोती मिला दे, परन्तु झलक नहीं मिलती; इसलिए परीक्षा करके पारखी ठगाता भी नहीं है, कोई भोला हो वही मोती के नाम से ठगा जाता है; तथा उसकी परम्परा भी नहीं चलती, शीघ्र ही कोई झूठे मोतियों को निषेध करता है। उसीप्रकार कोई सत्यार्थ पदों के समूहरूप जैनशास्त्र में असत्यार्थ पद मिलाये; परन्तु जैनशास्त्रों के पदों में तो कषाय मिटाने का तथा लौकिक कार्य घटाने का प्रयोजन है और उस पापी ने जो असत्यार्थ पद मिलाये हैं, उनमें कषाय का पोषण करने का तथा लौकिक कार्य साधने का प्रयोजन है, इसप्रकार प्रयोजन नहीं मिलता; इसलिए परीक्षा करके ज्ञानी ठगाता भी नहीं, कोई मूर्ख हो वही जैनशास्त्र के नाम से ठगा जाता है, तथा उसकी परम्परा भी नहीं चलती, शीघ्र ही कोई उन असत्यार्थ पदों का निषेध करता है। दूसरी बात यह है कि ह्र ऐसे तीव्र कषायी जैनाभास यहाँ इस निकृष्ट काल में ही होते हैं; उत्कृष्ट क्षेत्र-काल बहुत हैं, उनमें तो ऐसे होते नहीं। इसलिए जैनशास्त्रों में असत्यार्थ पदों की परम्परा नहीं चलती। ह्र ऐसा निश्चय करना।" ___ इसप्रकार यह समझना ही सही है कि जिनका प्रतिपादन वीतरागता की पोषक जिनवाणी के अनुसार हो; उनके प्रतिपादन में व्यर्थ की शंकाआशंकाएँ खड़ी करना ठीक नहीं है। एक होता है मार्ग और एक होता है मार्ग का मार्ग । यदि हम किसी से मुम्बई जाने का मार्ग पूछे और वह हमें बताये कि मुम्बई जानेवाले प्लेन में या ट्रेन में बैठ जाइये; आप मुम्बई पहुँच जावेंगे। यह तो हुआ मार्ग । प्लेन या ट्रेन में बैठ गये ह्न अब हमें क्या करना है ? कुछ नहीं, अब तो प्लेन चलेगा या ट्रेन चलेगी और हम यथासमय १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ १२ पाँचवाँ प्रवचन मुम्बई पहुँच जावेंगे; पर हमारी मूल समस्या तो यह है कि प्लेन या ट्रेन में बैठे कैसे ? वे हैं कहाँ ? इसप्रकार एक है मोक्ष का मार्ग और दूसरा है मोक्ष के मार्ग का मार्ग । यदि हम किसी से मोक्ष में जाने का मार्ग पूछे और वह बताये कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र प्राप्त कर लीजिये, आप मुक्ति में पहुँच जावेंगे। यह तो हुआ मार्ग। हमारी मूल समस्या तो यह है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति कैसे हो? सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्ष के मार्ग पर कैसे पहँचे ? ___ यहाँ जिसकी चर्चा चल रही है; वस्तुत: वह मोक्ष के मार्ग का मार्ग है। इसमें कहा गया है कि क्षयोपशम और विशुद्धिलब्धि से सम्पन्न व्यक्ति जब किसी ज्ञानी धर्मात्मा से सुनकर, समझकर वस्तुस्वरूप का निर्णय करता है या आगम का अभ्यास करके वस्तुस्वरूप समझने का पुरुषार्थ करता है या दोनों के सहयोग से इस दिशा में सक्रिय होता है; अध्ययन, मनन, चिंतन के आधार पर वस्तुस्वरूप का सही निर्णय कर रहा होता है; तब वह मुक्ति के मार्ग के मार्ग में होता है। इसप्रकार मुक्ति के मार्ग के मार्ग में स्थित आत्मार्थी का मार्गदर्शन करते हुए पण्डित टोडरमलजी लिखते हैं ह्न "इसलिए मुख्यता से तो तत्त्वनिर्णय में उपयोग लगाने का पुरुषार्थ करना । तथा उपदेश भी देते हैं, सो यही पुरुषार्थ कराने के अर्थ दिया जाता है तथा इस पुरुषार्थ से मोक्ष के उपाय (मोक्षमार्ग) का पुरुषार्थ अपने आप सिद्ध होगा।" जिसप्रकार प्लेन या ट्रेन में बैठ जाने के बाद तो मार्ग सुगम ही है; कठिनाई तो प्लेन या ट्रेन में बैठने में है। उसीप्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र की प्राप्ति के बाद तो मार्ग सुगम ही है; असली कठिनाई तो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति करने में ही है। इसमें जिनवाणी (सत्साहित्य) और गुरु की विशेष आवश्यकता है; क्योंकि अभी हमें कुछ पता नहीं है, सबकुछ समझना है। १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ ३११
SR No.009470
Book TitleRahasya Rahasyapurna Chitthi ka
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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