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________________ प्रवचनसार अनुशीलन युक्त हो और घोर चारित्र का आचरण भी करती हो; तथापि उसके निर्जरा नहीं होती ह्र ऐसा कहा गया है। इसलिए जिनेन्द्र भगवान ने उन महिलाओं का लिंग (वेष) वस्त्र सहित कहा है। कुल, रूप, उम्र से सहित जिनागमानुसार अपने योग्य आचरण करती हुईं वे श्रमणी - आर्यिका कहलाती हैं। तीन वर्णों में से कोई एक वर्णवाला, नीरोग शरीरी, तपश्चरण को सहन करने योग्य उम्र व सुन्दर मुखवाला तथा लोकनिन्दा से रहित पुरुष दीक्षा ग्रहण करने के योग्य होता है। ८८ रत्नत्रय के नाश को जिनेन्द्रदेव ने भंग कहा है और शेष भंग (शरीर के किसी अंग का खण्डित हो जाना, वायु का रोग हो जाना, अंडकोषों का बढ़ जाना आदि) के द्वारा वह सल्लेखना के योग्य नहीं होता। आचार्य जयसेन ने उक्त गाथाओं की टीका में बहुत कुछ तो गाथाओं में समागत भाव का ही स्पष्टीकरण किया है; फिर भी कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ऐसी हैं कि जिनका उल्लेख करना आवश्यक है । २६वीं गाथा की टीका में वे स्वयं एक प्रश्न उठाते हैं कि जो दोष महिलाओं में बताये गये हैं; क्या वे दोष पुरुषों में नहीं हैं ? उक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए वे कहते हैं कि ऐसी बात नहीं है। यद्यपि ये दोष थोड़े-बहुत पुरुषों में भी पाये जाते हैं; तथापि महिलाओं में बहुलता से पाये जाते हैं। होने मात्र से समानता नहीं होती। क्या विष की कणिका और विष के पर्वत को समान कहा जा सकता है ? दूसरी बात यह है कि पुरुषों में वज्रवृषभनाराचसंहनन नामक पहले संहनन के बल से दोषों को नष्ट करनेवाला मुनि के योग्य विशेष संयम होता है। उक्त दोषों की बहुलता से और वज्रवृषभनाराचसंहनन न होने के कारण स्त्रियों में उक्त संयम कैसे हो सकता है ? प्रश्नह्न २७वीं गाथा में कहा गया है कि महिलाओं के निर्जरा नहीं होती। मोक्ष नहीं होता ह्न यह बात तो ठीक, पर निर्जरा भी नहीं होती ह्न यह कैसे माना जा सकता है? इस कथन की अपेक्षा क्या है ? गाथा २२४ ८९ उत्तर ह्र अरे भाई ! इसका भाव यह है कि उनके उसी भव में कर्मों के क्षय करने योग्य सम्पूर्ण निर्जरा नहीं होती। दूसरी बात यह है कि प्रथम संहनन का अभाव होने से जिसप्रकार महिलायें सातवें नरक नहीं जातीं; उसीप्रकार मोक्ष भी नहीं जातीं। प्रश्न ह्न शास्त्र में भावस्त्रियों को तो मोक्ष जाना माना गया है। उक्त कथन का क्या आशय है? उत्तर भावस्त्रियों के प्रथम संहनन होता है और द्रव्य स्त्रीवेद का अभाव होने से उसी भव से मोक्ष जानेवाले परिणामों को रोकनेवाला तीव्र कामोद्रेक भी नहीं होता । अतः उन्हें मोक्ष होने में कोई बाधा नहीं है। प्रश्नह्न यदि द्रव्यस्त्रियों को मोक्ष नहीं होता तो फिर आर्यिकाओं में महाव्रत का आरोपण क्यों किया गया है ? उत्तर आर्यिकाओं के महाव्रत उपचार से कहे गये हैं और उपचार साक्षात् होने के योग्य नहीं होता । विशेष बात यह है कि १९वें तीर्थंकर मल्लिनाथ को स्त्री मानना भी उचित नहीं है; क्योंकि पूर्व भव में सोलहकारण भावनाएँ भाकर तीर्थंकर होते हैं और सम्यग्दृष्टि को स्त्रीवेद का बंध नहीं होता; तब वे स्त्री कैसे हो सकते हैं? दूसरी बात यह है कि यदि मल्लिनाथ स्त्री थे तो फिर उनकी प्रतिमा स्त्री के रूप में क्यों नहीं लगाई जाती ? प्रश्न ह्न यदि स्त्रियाँ सदोष होती हैं तो फिर सीता, रुक्मणी, कुन्ती, द्रोपदी, सुभद्रा आदि स्त्रियाँ जिनदीक्षा ग्रहण कर सोलहवें स्वर्ग में कैसे गईं? उत्तर ह्न इसमें कोई दोष नहीं; क्योंकि उनके लिए स्वर्ग में जाने का निषेध नहीं है । वहाँ से आकर पुरुष होकर मोक्ष जाने में भी कोई आपत्ति नहीं है; क्योंकि स्त्रियों का उसी भव से मोक्ष जाने का निषेध है, अन्य भव से पुरुष होकर मोक्ष जाने में कोई दोष नहीं है । · वस्तुतः कार्य तो उपादान की पर्यायगत योग्यता के अनुसार ही सम्पन्न होता है; निमित्त की तो मात्र अनुकूलता के रूप से उपस्थिति ही रहती है। ह्न निमित्तोपादान, पृष्ठ- २८
SR No.009469
Book TitlePravachansara Anushilan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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