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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि भविष्यकाल में होनेवाले २४ तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य (चौपई १५ मात्रा) महापद्म जिन भावीनाथ, श्रेणिक जीव जगत विख्यात । लक्ष्मी चञ्चल लिपटी आन, तव चरणा पूर्णां भगवान ।।१।। ___ॐ ह्रीं श्री महापद्मजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।६६।। देव चतुर्विध पूजे पाय, माथ नाय सुरप्रभ जिनराय। मैं सुमरण करके हरषाय, पूनँ हर्ष न अङ्ग समाय ।।२।। ॐ ह्रीं श्री सुरप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वामीति स्वाहा ।।६७।। सप्रभ जिनके वंदू पाय, सेवकजन सुखसार लहाय । करुणाधारी धन दातार, जो अविनाशी जिय सुखकार ।।३।। ॐ ह्रीं श्री सुप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।६८।। मोक्ष राज्य देवे नहिं कोय, स्वयं आत्मबल लेवें सोय। देव स्वयंप्रभ चरण नमाय, पूनँ मन-वच ध्यान लगाय ।।४।। ॐ ह्रीं श्री स्वयंप्रभजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा ।।६९।। मन-वच-काय गुप्ति धरतार, तीव्र शस्त्र अघ मारणहार। सर्वायुध जिन साम्य प्रचार, पूजत जग मङ्गल करतार ।।५।। ॐ ह्रीं श्री सर्वायुधजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७।। कर्म शत्रु जीतन बलवान, श्री जयदेव परम सुखखान । पूजत मिथ्यातम विघटाय, तत्त्व कुतत्त्व प्रकट दर्शाय ।।६। ॐ ह्रीं श्री जयदेवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७१।। आत्मप्रभाव उदय जिन भयो, उदयप्रभ जिन तातें थयो। पूजत उदय पुण्य का होय, पापबन्ध सब डालें खोय ।।७।। ॐ ह्रीं श्री उदयप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७२।। प्रभा मनीशा बुद्धिप्रकाश, प्रभादेव जिन छूटी आश। पूजत प्रभा ज्ञान उपजाय, संशयतिमिर सबै हट जाय ।।८।। ॐ ह्रीं श्री प्रभादेवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।७३।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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