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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि अमलप्रभ निर्मल ज्ञान धरे, सेवा में इन्द्र अनेक खड़े।। नित संत सुमंगल गान करें, निज आतमसार विलास करें।।९।। ॐ ह्रीं श्री अमलप्रभजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।२६।। उद्धार जिनं उद्धार करें, भव कारण भ्रान्ति विनाश करें। हम डूब रहे भवसागर में, उद्धार करो निज आत्म रमें ।।१०।। ॐ ह्रीं श्री उद्धारजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।२७।। अग्निदेव जिनं हो अग्निमई, अठ कर्मन ईंधन दाह दई। हम असाततृणं कर दग्ध प्रभो, निजसम करलो जिनराज प्रभो॥११॥ ॐ ह्रीं श्री अग्निदेवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।२८।। संयम जिन द्वैविध संयम को, प्राणी रक्षण इन्द्रिय दम को। दीजे निश्चय निज संयम को, हरिये मम सर्व असंयम को ।।१२।। ॐ ह्रीं श्री संयमजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।२९।। शिव जिनवर शाश्वत सौख्यकरी, निज आत्मविभूति स्वहस्त करी। शिववाञ्छक हम कर जोड़ नमें, शिवलक्ष्मी दो नहिं काहू नमें ।।१३।। ॐ ह्रीं श्री शिवजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।३०।। पुष्पांजलि पुष्पनितें जजिये, सब कामव्यथा क्षण में हरिये । निजशीलस्वभावहिरमरहिये, निज आत्मजनित सुखकोलहिये।।१४।। ॐ ह्रीं श्री पुष्पांजलिजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ॥३१॥ उत्साह जिनं उत्साह करें, जिन संयम चन्द्रप्रकाश करें। समभाव समुद्र बढावत हैं, हम पूजत तव गुण पावत हैं ।।१५।। ॐ ह्रीं श्री उत्साहजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।३२।। चिन्तामणि सम चिन्ता हरिये, निज सम करिये भव तम हरिये। परमेश्वर निज ऐश्वर्य धरें, जो पूजें ताके विघ्न हरें।।१६।। ॐ ह्रीं श्री परमेश्वरजिनाय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।३३।। ज्ञानेश्वर ज्ञान समुद्र पाय, त्रैलोक बिन्दु सम जहं दिखाय। निज आतमज्ञान प्रकाशकार, वन्, पूनँ मैं बार-बार ।।१७।। । ॐ ह्रीं श्री ज्ञानेश्वरजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा ।।३४॥ 11
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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