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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n यागमण्डल विधान स्थापना (गीता) कर्मतम को हननकर, निजगुण प्रकाशन भानु हैं। अन्त अर क्रम रहित दर्शन-ज्ञान-वीर्य निधान हैं।। सुखस्वभावी द्रव्य चित् सत् शुद्ध परिणति में रमें। आइये सब विघ्न चूरण पूजते सब अघ वमें।। ॐ ह्रीं श्री जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। ___ॐ ह्रीं श्री जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधाने सर्वयागमण्डलोक्ता जिनमुनय अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )। अष्टक (चाल) गंगा-सिंधू वर पानी, सुवरणझारी भर लानी। गुरु पञ्च परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई।। ॐ ह्रीं श्री अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे सर्वयज्ञेश्वरजिनमुनिभ्यो जन्म-जरा-मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। शुद्ध गन्ध लाय मनहारी, भवताप शमन करतारी । गुरु पञ्च परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई।। ॐ ह्रीं श्री अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे सर्वयज्ञेश्वरजिनमुनिभ्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। शशिसम शुचि अक्षत लाए, अक्षयगुण हित हुलसाए। गुरु पञ्च परम सुखदाई, हम पूजें ध्यान लगाई।। ॐ ह्रीं श्री अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे सर्वयज्ञेश्वरजिनमुनिभ्यो अक्षयगुणप्राप्तये ।। अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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