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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि LL राग-दोष मद मोह हरन को, तुम ही हौ वरवीरा। ।। यातें शरन गही जगपतिजी, वेग हरो भवपीरा ।। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। २०. श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान का अर्घ्य (गीतिका ) जल गंध आदि मिलाय आठों, दरब अरघ सजों वरों। पूजों चरन-रज भगत जुत, जातें जगत सागर तरों ।। शिवसाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ मुनि गुनमाल है। तसु चरन आनन्दभरन तारन, तरन विरद विशाल है। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। २१. श्री नमिनाथ भगवान का अर्घ्य जल फलादि मिलाय मनोहरं, अरघ धारत ही भय भौ हरं। जजतु हौं नमि के गुन गायकें, जुगपदांबुज प्रीति लगायकें।। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। २२. श्री नेमिनाथ भगवान का अर्घ्य (चाल होली) जल-फल आदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय। अष्टमथिति के राजकरन कों, जजों अंग वसु नाय ।। दाता मोक्ष के, श्री नेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।। ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। २३. श्री पार्श्वनाथ भगवान का अर्घ्य नीर गन्ध अक्षतान् पुष्प चारु लीजिए। दीप-धूप-श्रीफलादि अर्ध्यतैं जजीजिये ।। पार्श्वनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा। दीजिए निवास मोक्ष, भूलिए नहीं कदा।। ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। .
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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