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________________ 68 n प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि चौबीस तीर्थंकरों के अर्घ्य १. श्री ऋषभनाथ भगवान का अर्घ्य ( ताटंक ) शुचि निरमल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हरषाय । धूप फल अर्घ्य सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ।। श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच - काय । हे करुणानिधि ! भव-दुख मेटो, यातैं मैं पूजूँ प्रभु पाय ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । २. श्री अजितनाथ भगवान का अर्घ्य ( त्रिभंगी ) जल - फल सब सज्जै, बाजत बज्जै, गुनगन रज्जै मन मज्जै । तुअ पदजुगमज्जे, सज्जन जज्जै, ते भव भज्जै निजकज्जै ।। श्री अजितजिनेशं, नुतनक्रेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं । मनवांछित दाता, त्रिभुवनत्राता, पूजों ख्याता जग्गेशं ।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । ३. श्री संभवनाथ भगवान का अर्घ्य ( चौबोला ) जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ्य किया । तुमको अरपों भावभगति धर, जै जै जै शिवरमनि पिया ।। संभवजिन के चरन चरचतैं, सब आकुलता मिट जावै । निजनिधि ज्ञान - दरश - सुख-वीरज, निराबाध भविजन पावै ।। ॐ ह्रीं श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । J ४. श्री अभिनन्दननाथ भगवान का अर्घ्य ( हरिगीतिका ) अष्ट द्रव्य सँवारि सुन्दर, सुजस गाय रसाल ही। नचत रचत जजों चरन जुग, नाय नाय सुभाल ही ॥ u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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