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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n सीमन्धर जिनपूजन स्थापना (कुण्डलिया) भव-समुद्र सीमित कियो, सीमन्धर भगवान। कर सीमित निजज्ञान को, प्रकट्यो पूरण ज्ञान ।। प्रकट्यो पूरण ज्ञान-वीर्य-दर्शन सुखकारी, समयसार अविकार विमल चैतन्य-विहारी। अंतर्बल से किया प्रबल रिपु-मोह पराभव, अरे भवान्तक! करो अभय हर लो मेरा भव ।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिन! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिन! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिन! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् , सन्निधिकरणम् । प्रभुवर! तुम जल-से शीतल हो, जल-से निर्मल अविकारी हो। मिथ्यामल धोने को जिनवर, तुम ही तो मलपरिहारी हो ।। तुम सम्यग्ज्ञान जलोदधि हो, जलधर अमृत बरसाते हो। भविजन मनमीन प्राणदायक, भविजन मनजलज खिलाते हो।। हे ज्ञान पयोनिधि सीमन्धर! यह ज्ञान प्रतीक समर्पित है। हो शान्त ज्ञेयनिष्ठा मेरी, जल से चरणाम्बुज चर्चित है।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन-सम चन्द्रवदन जिनवर, तुम चन्द्रकिरण-से सुखकर हो। भव-ताप निकंदन हे प्रभुवर! सचमुच तुम ही भवदुःख हर हो ।। जल रहा हमारा अन्तस्तल, प्रभु इच्छाओं की ज्वाला से। यह शान्त न होगा हे जिनवर रे! विषयों की मधुशाला से ।। चिर-अंतर्दाह मिटाने को, तुम ही मलयागिरि चंदन हो। चंदन से चरचूँ चरणांबुज, भव-तप-हर शत-शत वंदन हो।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु! अक्षतपुर के वासी हो, मैं भी तेरा विश्वासी हैं। क्षत-विक्षत में विश्वास नहीं, तेरे पद का प्रत्याशी हूँ।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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