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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि L'तन-मन-धन निज से भिन्न मान, लौकिक वांछा नहिं लेश रखें। तुम जैसा वैभव पाने को, तव निर्मल चरण-कमल अच॑ ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक (दोहा) दूज कृष्ण वैशाख को, प्राणत स्वर्ग विहाय । वामा माता उर वसे, पूनँ शिव सुखदाय ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय वैशाखकृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पौष कृष्ण एकादशी, सुतिथि महा सुखकार । अन्तिम जन्म लियो प्रभु, इन्द्र कियो जयकार ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पौषकृष्णैकादश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा। पौष कृष्ण एकादशी, बारह भावन भाय । केशलोंच करके प्रभु, धरो योग शिव दाय ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पौषकृष्णकादश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। शुक्लध्यान में होय थिर, जीत उपसर्ग महान । चैत्र कृष्ण शुभ चौथ को, पायो केवलज्ञान ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय चैत्रकृष्णचतुर्थ्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्रावण शुक्ल सु सप्तमी, पायो पद निर्वाण । सम्मेदाचल विदित है, तव निर्वाण सुथान ।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय श्रावणशुक्लसप्तम्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला ( हरिगीतिका ) हे पार्श्व प्रभु मैं शरण आयो दर्शकर अति सुख लियो। चिन्ता सभी मिट गयी मेरी कार्य सब पूरण भयो ।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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