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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n भासा जगत असार, देख निधन नीलांजना। नवमी कृष्णा चैत्र परम दिगम्बर पद धरो ।। चिदानन्द पद सार, ध्याने को मुनि पद लिया। परम हर्ष उर धार लौकान्तिक, धनि-धनि कहा ।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। प्रगट्यो केवलज्ञान, फाल्गुन कृष्ण एकादशी। धर्मतीर्थ अम्लान, हुआ प्रवर्तित आप से ।। समझा तत्त्व स्वरूप, दिव्य देशना श्रवण कर। पाई मुक्ति अनूप, भव्यन निज पुरुषार्थ से ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा। पायो अविचल थान, चौदश कृष्णा माघ दिन। गिरि कैलाश महान, तीर्थ प्रगट जग में हुआ।। सहज मुक्ति दातार, शुद्धातम की भावना । वर्ते प्रभु सुखकार, मैं भी तिष् मोक्ष में ।। ॐ हीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा। जयमाला (दोहा) आदीश्वर वन्दूँ सदा, चिदानन्द छलकाय । चरण-शरण में आपकी, मुक्ति सहज दिखाय ।। (वीरछन्द) धन्य ध्यान में आप विराजे, देख रहे प्रभु आतमराम । ज्ञाता-दृष्टा अहो जिनेश्वर, परमज्योतिमय आनन्दधाम ।। रत्नत्रय आभूषण साँचे, जड़ आभूषण का क्या काम? राग-द्वेष निःशेष हुए हैं, वस्त्र-शस्त्र का लेश न नाम ।। तीन लोक के स्वयं मुकुट हो, स्वर्ण मुकुट का है क्या काम? प्रभु त्रिलोक के नाथ कहाओ, फिर भी निज में ही विश्राम ।। भव्य निहारें अहो आपको, आप निहारें अपनी ओर । | धन्य आपकी वीतरागता, प्रभुता का भी ओर न छोर ।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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