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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि जयमाला (पद्धरि) जय वीतराग सर्वज्ञ प्रभो, निज ध्यान लीन गुणमय अपार । अष्टादश दोष रहित जिनवर, अरहन्त देव को नमस्कार ।।१।। अविकल अविकारी अविनाशी, निजरूप निरंजन निराकार। जय अजर अमर हे मुक्तिकंत, भगवंत सिद्ध को नमस्कार ।।२।। छत्तीस सुगुण से तुम मण्डित, निश्चय रत्नत्रय हृदय धार । हे मुक्तिवधू के अनुरागी, आचार्य सुगुरु को नमस्कार ।।३।। एकादश अंग पूर्व चौदह के, पाठी गुण पच्चीस धार । बाह्यान्तर मुनि मुद्रा महान, श्री उपाध्याय को नमस्कार ।।४।। व्रत समिति गुप्ति चारित्र धर्म, वैराग्य भावना हृदय धार । हे द्रव्य-भाव संयममय मुनिवर, सर्व साधु को नमस्कार ।।५।। बह पुण्यसंयोग मिला नरतन, जिनश्रुत जिनदेव चरण दर्शन । हो सम्यग्दर्शन प्राप्त मुझे, तो सफल बने मानव जीवन ।।६।। निज-पर का भेद जानकर मैं, निज को ही निज में लीन करूँ। अब भेदज्ञान के द्वारा मैं, निज आत्म स्वयं स्वाधीन करूँ।।७।। निज में रत्नत्रय धारण कर, निज परिणति को ही पहचानें। परपरिणति से हो विमुख सदा, निज ज्ञानतत्त्व को ही जानूँ ।।८।। जब ज्ञानज्ञेयज्ञाता विकल्प तज, शक्लध्यान मैं ध्याऊँगा। तब चार घातिया क्षय करके, अरहन्त महापद पाऊँगा।।९।। है निश्चित सिद्ध स्वपद मेरा, हे प्रभु! कब इसको पाऊँगा। सम्यक् पूजा फल पाने को, अब निजस्वभाव में आऊँगा।।१०।। अपने स्वरूप की प्राप्ति हेतु, हे प्रभु! मैंने की है पूजन। तबतकचरणों में ध्यान रहे,जबतकन प्राप्त हो मुक्ति सदन ।।११।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालामहायँ निर्वपामीति स्वाहा।। हे मंगल रूप अमंगल हर, मंगलमय मंगल गान करूँ। मंगल में प्रथम श्रेष्ठ मंगल, नवकार मंत्र का ध्यान करूँ।।१२।। (पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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