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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि (देव-स्तवन) चरणों में आया हूँ प्रभुवर! शीतलता मुझको मिल जाये। मुरझाई ज्ञान-लता मेरी, निज अन्तर्बल से खिल जाये।। सोचा करता हूँ भोगों से, बुझ जायेगी इच्छा-ज्वाला। परिणाम निकलता है लेकिन, मानो पावक में घी डाला।। तेरे चरणों की पूजा से, इन्द्रिय सुख को ही अभिलाषा। अबतकनसमझ ही पाया प्रभु! सच्चे सुख की भी परिभाषा।। तुम तो अविकारी हो प्रभुवर! जग में रहते जग से न्यारे। अतएव झुके तव चरणों में, जग के माणिक-मोती सारे।। (शास्त्र-स्तवन) स्याद्वादमयी तेरी वाणी, शुभनय के झरने झरते हैं। उस पावन नौका पर लाखों, प्राणी भव-वारिधि तिरते हैं।। (गुरु-स्तवन) हे गुरुवर! शाश्वत सुखदर्शक, यह नग्न स्वरूप तुम्हारा है। जग की नश्वरता का सच्चा, दिग्दर्शन करनेवाला है।। जब जग विषयों में रच-पच कर, गाफिल निद्रा में सोता हो। अथवा वह शिव के निष्कंटक, पथ में विषकंटक बोता हो।। हो अर्द्ध-निशा का सन्नाटा, वन में वनचारी चरते हों। तब शान्त निराकुल मानस तुम, तत्त्वों का चिंतन करते हो।। करते तप शैल नदी-तट पर, तरु-तल वर्षा की झड़ियों में। समता-रसपान किया करते, सुख-दुःख दोनों की घड़ियों में। अन्तर्वाला हरती वाणी, मानो झड़ती हों फुलझड़ियाँ। भव-बन्धन तड़-तड़ टूट पड़ें, खिल जायें अन्तर की कलियाँ।। तुम-सा दानी क्या कोई हो, जग को दे दी जग की निधियाँ। दिन-रात लुटाया करते हो, सम-शम की अविनश्वर मणियाँ।। ॐ ह्रीं श्री देव-शास्त्र-गुरुभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। हे निर्मल देव! तुम्हें प्रमाण, हे ज्ञान-दीप आगम! प्रणाम। हेशान्ति-त्याग केमूर्तिमान, शिव-पथ-पंथी गुरुवर! प्रणाम। ( पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् )
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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