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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n ऐसी वस्तु समझने से, चतुर्गति फेरा कटता है । जगत का फेरा मिटता है ।२ ॥ नय निश्चय - व्यवहार निरूपण, मोक्षमार्ग का करती । वीतरागता ही मुक्तिपथ, शुभ व्यवहार उचरती ।। माता! तेरी सेवा से, मुक्ति का मारग खुलता है। महा मिथ्यातम धुलता है ।। ३ ।। तेरे अंचल में चेतन की, दिव्य चेतना पाते । तेरी अमृत लोरी क्या है, अनुभव की बरसातें ।। माता ! तेरी वर्षा में, निजानन्द झरना झरता है । अनुपमानन्द उछलता है ।।४ ॥ नव-तत्त्वों में छुपी हुई जो, ज्योति उसे बतलाती । चिदानन्द ध्रुव ज्ञायक घन का, दर्शन सदा कराती ।। माता ! तेरे दर्शन से, निजातम दर्शन होता है । सम्यग्दर्शन होता है ।५ ॥ 195 धन्य-धन्य वीतराग वाणी... धन्य-धन्य वीतराग वाणी, अमर तेरी जग में कहानी । चिदानंद की राजधानी, अमर तेरी जग में कहानी ।। टेक ॥। उत्पाद - व्यय अरु ध्रौव्य स्वरूप, वस्तु बखानी सर्वज्ञ भूप । स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग में कहानी ।। १ ।। नित्य-अनित्य अरु एक अनेक, वस्तु कथंचित् भेद - अभेद । अनेकांतरूपा बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।। २ ।। भाव शुभाशुभ बंधस्वरूप, शुद्ध- चिदानन्दमय मुक्तिरूप । - मारग दिखाती है वाणी, अमर तेरी जग में कहानी ।।३. U
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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