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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि मैं साधुजन को संग चाहँ, प्रीति तिनही सों करौं। मैं पर्व के उपवास चाहँ. और आरंभ परिहरौं ।। इस दुखद पंचमकाल माहीं, सुकुल श्रावक मैं लह्यौ। अरु महाव्रत धरि सकौं नाहीं, निबल तन मैंने गह्यौ ।।७।। आराधना उत्तम सदा, चाहँ सुनो जिनराय जी। तुम कृपानाथ अनाथ 'द्यानत' दया करना न्याय जी।। वसुकर्म नाश विकास, ज्ञान प्रकाश मुझको दीजिये। करि सुगति गमन समाधिमरन, सुभक्ति चरनन दीजिये ।।८।। श्री अरहंत सदा मंगलमय... श्री अरहन्त सदा मंगलमय, मुक्तिमार्ग का करें प्रकाश । मंगलमय श्री सिद्धप्रभु जो, निजस्वरूप में करें विलास ।। शुद्धातम के मंगल साधक, साधु पुरुष की सदा शरण हो। धन्य घड़ी वह धन्य दिवस, जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।।१।। मंगलमय चैतन्यस्वरों में परिणति की मंगलमय लय हो। पुण्य-पाप की दुःखमय ज्वाला, निज आश्रय से त्वरित विलय हो।। देव-शास्त्र-गुरु को वंदन कर, मुक्तिवधू का त्वरित वरण हो। धन्य घड़ी वह धन्य दिवस, जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।।२।। मंगलमय पाँचों कल्याणक, मंगलमय जिनका जीवन है।। मंगलमय वाणी सुखकारी शाश्वत सुख की भव्य सदन है।। मंगलमय सत्धर्मतीर्थ कर्ता की मुझको सदा शरण हो। धन्य घड़ी वह धन्य दिवस, जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।।३।। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरणमय मुक्तिमार्ग मंगलदायक है। सर्व पापमल का क्षय करके, शाश्वत सुख का उत्पादक है।। मंगल गुण-पर्यायमयी चैतन्यराज की सदा शरण हो। धन्य घड़ी वह धन्य दिवस, जब मंगलमय मंगलाचरण हो ।।४।। * ***
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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