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________________ 178 n प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि परमार्थ शरण अशरण जग में शरण एक शुद्धातम ही भाई । धरो विवेक हृदय में आशा पर की दुखदाई ॥ | १ || सुख दुख कोई न बाँट सके यह परम सत्य जानो । कर्मोदय अनुसार अवस्था संयोगी मानो ॥ २ ॥ कर्म न कोई लेवे देवे प्रत्यक्ष ही देखो । जन्मे-मरे अकेला चेतन तत्त्वज्ञान लेखो ॥ ३ ॥ पापोदय में नहीं सहाय का निमित्त बने कोई । पुण्योदय में नहीं दण्ड का भी निमित्त होई ।।४ ॥ इष्ट-अनिष्ट कल्पना त्यागो हर्ष - विषाद तजो । समता धर महिमामय अपना आतम आप भजो ।।५ ।। शाश्वत सुखसागर अन्तर में देखो लहरावे । दुर्विकल्प में जो उलझे वह लेश न सुख पावे ।। ६ ।। मत देखो संयोगों को कर्मोदय मत देखो। मत देखो पर्यायों को गुणभेद नहीं देखो ।। ७ ।। अहो देखने योग्य एक ध्रुव ज्ञायक प्रभु देखो । हो अन्तर्मुख सहज दीखता अपना प्रभु देखो ॥८ ॥ देखत होउ निहाल अहो निज परम प्रभू देखो । पाया लोकोत्तम जिनशासन आतमप्रभु देखो ।। ९ ।। निश्चय नित्यानन्दमयी अक्षय पद पाओगे । दुखमय आवागमन मिटे भगवान कहाओगे ।। १० ।। u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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