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________________ 160 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n " हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाव के ।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लपंचम्यां श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ॥ २ ॥ " शुभ माघ सुदि षष्ठि दिना, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । सम्भव निजातम केलि करते सिद्ध पदवी पाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के । सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के ।। ॐ ह्रीं माघशुक्लपक्ष्यां श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताव अर्घ्यं ॥ ३ ॥ " वैशाख सुदि षष्ठी दिना, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । अभिनन्दन शिवधाम पहुँचे, शुद्ध निज गुण पाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लाय के। सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के ।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लषष्ठयां श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अच्छे निर्वपामीति स्वाहा |||४|| शुभ चैत सुदि एकादशी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के सुमतिजिन शिवधाम पायो, आठ कर्म नशाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा करें गुण मन लाय के। " सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के ।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ल एकादश्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं | निर्वपामीति स्वाहा ।।।५।। शुभ कृष्ण फाल्गुन सप्तमी, सम्मेदगिरि निज ध्याय के । श्री पद्मप्रभ निर्वाण पहुँचे, स्वात्म अनुभव पाय के ।। हम धार अर्घ्य महान पूजा, करें गुण मन लाय के । सब राग दोष मिटाय के, शुद्धात्म मन में भाय के ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणकप्राप्ताय अध्य निर्वपामीति स्वाहा |||६|| u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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