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________________ 158 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि चन्दा समान बहु अक्षत धार थाली, अक्षय स्वभाव पाऊँ गुणरत्नशाली। पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं, पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। चम्पा गुलाब मरुवा बहु पुष्प लाऊँ, दुख टार काम हरके निज भाव पाऊँ। पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं, पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं ||निर्वपामीति स्वाहा। ताजे महान पकवान बनाय धारे, बाधा मिटाय क्षुध रोग स्वयं सम्हारे। पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं, पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपावली जगमगाय अंधेर घाती, मोहादि तम विघट जाय भव प्रतापी। पूजूं सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं, पाऊँ महान शिवमंगल नाथ कालं ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन कपूर अगरादि सुगन्ध धूपं, टालूँ जु अष्ट कर्म हो सिद्ध भूपं । u
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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