SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 150 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि लौंग औबादाम आम्र आदि पक्व फल लिये। सुमुक्ति धाम पाय के स्वआत्मअमृत पिये।। नाथ चौबिसों महान वर्तमान काल के, बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टाल के।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विशंतिजिनेन्द्रेभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा। तोय गंध अक्षतं सुपुष्प चारु चरु धरे, दीप धूप फल मिलाय अर्घ्य देय सुख करे।। नाथ चौबिसों महान वर्तमान काल के, बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टाल के।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरपर्यन्तचतुर्विशतिजिनेन्द्रेभ्य: अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानकल्याणकमण्डित चौबीस तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य ( चाली) एकादशि फागुन वदि की, मरुदेवी माता जिनकी। हत घाती केवल पायो, पूजत हम चित उमगायो।। ॐ हीं फाल्गुनकृष्ण-एकादश्यां श्रीवृषभनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्यं ।।१।। एकादशि पूष सुदी को, अजितेश हती घाती को। निर्मल निज ज्ञान उपाये, हम पूजत सम सुख पाये।। ॐ ह्रीं पौषशुक्ल-एकादश्यां श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अय॑ ।।२।। कार्तिकवदि चौथ सुहाई, संभव केवल निधिपाई। भविजीवन बोध दियो है, मिथ्यामत नाश कियो है ।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णचतुर्थ्यां श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अय॑ ।।३।। चौदशि शुभ पौष सुदी को, अभिनन्दन हन घाती को। केवल पा धर्म प्रचारा, पूनँ चरणा हितकारा ।। 'ॐहीं पौषशुक्लचतुर्दश्यां श्रीअभिनन्दननाथजिनेन्द्राय ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय अर्घ्य,
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy