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________________ 144 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि (वसंततिलका) सुन्दर पवित्र गंगाजल लेय झारी, डारूँ त्रिधार तुम चरणन अग्र भारी। श्री तीर्थनाथ वृषभेश मुनीन्द्र चरणा, पूर्णां सुमंगल करण सब पाप हरणा।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय जन्म-जरा-मृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा । श्री चन्दनादि शुभ केशर मिश्र लाये, भवताप उपशमकरण निजभाव ध्याये। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। शुभ श्वेत निर्मल सुअक्षत धार थाली, अक्षय गुणा प्रगट कारण शक्तिशाली। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा, पूजूं सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। चम्पा गुलाब इत्यादि सु पुण्य धारे, है काम शत्रु बलवान तिसे विदारे। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा, पूर्जे सुमंगल करण सब पाप हरणा ।। || ॐ ह्रीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। फेणी सुहाल बरफी पकवान लाए, क्षुत्रोग नाशने कारण काल पाए। श्री तीर्थनाथ वृषभेष मुनीन्द्र चरणा, पूर्णां सुमंगल करण सब पाप हरणा।। *हीं श्रीऋषभतीर्थंकरमुनीन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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