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________________ प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि मैं रागादि विभावों से कलषित. हे जिनवर! और आप परिपूर्ण वीतरागी हो प्रभुवर ।। कैसे हो प्रक्षाल, जगत के अघ क्षालक का। क्या दरिद्र होगा पालक? त्रिभुवन पालक का।। भक्ति भाव के निर्मल जल से अघ मल धोता। है किसका अभिषेक भ्रान्त चित खाता गोता ।। नाथ! भक्तिवश जिनबिम्बों का करूँ न्हवन मैं। आज करूँ साक्षात् जिनेश्वर का स्पर्शन मैं ।। ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं कृपालसन्तं वृषभादिमहावीरपर्यन्तं चतुर्विंशतितीर्थंकरपरमदेवमाद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे.....नाम्निनगरे मासानामुत्तमे .......मासे.....पक्षे.....तिथौ......वासरे मुन्यार्यिकाश्रावकश्राविकाणां सकलकर्मक्षयार्थं पवित्रतर-जलेन जिनमभिषेचयामि। (चारों कलशों से अभिषेक करें तथा वादिन नाद करायें एवं जय-जय शब्दोच्चारण करें) (दोहा) क्षीरोदधि-सम नीर से, करूँ बिम्ब प्रक्षाल। श्री जिनवर की भक्ति से, जानें निज पर चाल ।। तीर्थंकर का न्हवन शुभ, सुरपति करें महान । पंचमेरु भी हो गये, महातीर्थ सुखदान ।। करता हूँ शुभ भाव से, प्रतिमा का अभिषेक। बघ्र शुभाशुभ भाव से, यही कामना एक।। ( यदि अभिषेक करनेवाले भाई अधिक हों तो अन्य अभिषेक पाठ भी पढ़ें) जल-फलादि वसु द्रव्य ले, मैं पूनँ जिनराज । हुआ बिम्ब अभिषेक अब, पाऊँ निजपदराज ।। ॐ ह्रीं अभिषेकान्ते वृषभादिवीरान्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। श्री जिनवर का धवल यश, त्रिभुवन में है व्याप्त । शान्ति करें मम चित्त में, हे परमेश्वर आप्त ।। (पुष्पाञ्जलि क्षेपण करें)
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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