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________________ 138 प्रतिष्ठा पूजाञ्जलि n दीपक ले तम हरतारा, निज ज्ञानप्रभा विस्तारा। तपसी जिन चौबिस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं तपकल्याणकप्राप्तेभ्यः श्रीवृषभादिवर्धमानजिनेन्द्रेभ्य: दीपं नि. स्वाहा। धूपायन धूप खिवाऊँ, निज आठों कर्म जलाऊँ। तपसी जिन चौबिस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं तपकल्याणकप्राप्तेभ्यः श्रीवृषभादिवर्धमानजिनेन्द्रेभ्यः धूपं नि. स्वाहा। फल सुन्दर ताजे लाऊँ, शिवफल ले चाह मिटाऊँ। तपसी जिन चौबिस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए ।। ॐ ह्रीं तपकल्याणकप्राप्तेभ्यः श्रीवृषभादिवर्धमानजिनेन्द्रेभ्यः फलं नि. स्वाहा। शुभ आठों द्रव्य मिलाऊँ, करि अर्घ्य परमसुख पाऊँ। तपसी जिन चौबिस गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं तपकल्याणकप्राप्तेभ्यः श्रीवृषभादिवर्धमानजिनेन्द्रेभ्यः अर्घ्य नि. स्वाहा। तपकल्याणकविभूषित चौबीस तीर्थंकरों के लिए अर्घ्य नौमी वदि चैत प्रमाणी, वृषभेष तपस्या ठानी। निज में निज रूप पिछाना, हम पूजत पाप नशाना ।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां श्रीवृषभजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताया_...।।१।। दशमी शुभ माघ वदी को, अजितेश लियो तपनीको। जग का सब मोह हटाया, हम पूजत पाप भगाया।। ॐ ह्रीं माघकृष्णदशम्यां श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायावँ...।।२। मगसिर सुदि पूरणमासी, संभव जिन होय उदासी। केशलोंच महातप धारो, हम पूजत भय निरवारो।। ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लपूर्णिमायां श्रीसंभवनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्तायाऱ्या | निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
SR No.009468
Book TitlePratishtha Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Shastri
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2012
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size1 MB
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