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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव मान लीजिए कि आप उनके लिए जूते-चप्पल ले गये तो वे प्रतिदिन उनके पैरों की ठोकर खायेंगे; यदि आप पीकदान ले गये तो आपके पीकदान को प्रतिदिन उनके थूकने को झेलना होगा। इसीप्रकार आप और भी कल्पना कर सकते हैं। पर यदि आपने उन्हें शास्त्र भेंट किये तो उनके स्वाध्याय के अतिरिक्त और वे कर ही क्या सकते हैं, यदि प्रवचनों के कैसेट ले गये तो उन्हें सुनने के अतिरिक्त वे क्या कर सकेंगे? यदि उन्होंने शास्त्रों का स्वाध्याय किया, कैसेट सुने तो आपकी दी हुई भेंट उनके ज्ञानवृद्धि में निमित्त बनेगी । 86 मैं तो कहता हूँ कि किसी भी अवसर पर किसी को कुछ भेंट देना हो तो जिनवाणी ही देना चाहिये, हम किसी के भोगों में निमित्त क्यों बने ? हमें तो उसके स्वाध्याय में निमित्त बनना चाहिए; क्योंकि यदि आप नहीं देंगे तो भी वे भोगसामग्री तो स्वयं भी खरीदेंगे, पर शास्त्र शायद ही खरीदें; अतः जिनवाणी देना ही श्रेयस्कर है। फिर भी यदि आप प्रत्येक अवसर पर इसप्रकार की भेंट देने में असमर्थ हों तो भी इस अवसर पर तो भोगसामग्री देना किसी भी प्रकार ठीक नहीं है । इस अवसर पर तो ज्ञानसामग्री ही दी जानी चाहिए। आप सोच लीजिए, अच्छी तरह सोच लीजिए; जल्दी की कोई बात नहीं है, हड़बड़ी की भी कोई बात नहीं है । शान्ति से, गंभीरता से सोच-विचार कर निर्णय लीजिए । हाँ, एक बात जो आपसे पहले भी कही थी कि आप अपने घर जाकर यहाँ के जो अनुभव सुनावेंगे, उनके बारे में भी कुछ विचार कर लेना जरूरी है I व्यवस्थागत कमजोरी के कारण आपको जो परेशानी हुई है, उसे बढ़ाचढ़ाकर सुनाकर आप क्या भला करेंगे अपने मित्रों का, घरवालों का; क्योंकि उसे सुनकर तो वे यही संकल्प करेंगे कि हम तो ऐसे पंचकल्याणकों में कभी नहीं जावेंगे। क्या आप यही चाहते हैं कि आपके परिवार वाले, मित्र और रिश्तेदार धार्मिक कार्यों में शामिल ही न हो. नित्य पाप के कार्यों में ही ,, लिप्त रहें? नहीं तो फिर उन साधारण परेशानियों को बढ़ाचढ़ाकर कहकर
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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