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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पहला दिन पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैनसमाज का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नैमित्तिक महोत्सव है। इसका आयोजन एक विशाल मेले के रूप में होता है, इसमें देश के कोने-कोने से लाखों जैन भाई और बहिनें एकत्रित होते हैं। लगातार आठ दिन तक चलने वाले इस विशाल मेले की तैयारियाँ कुंभ मेले के समान महीनों पहिले से चलती हैं। यह महोत्सव अन्य लौकिक मेलों के समान आमोद-प्रमोद का मेला नहीं है, यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक मेला है; जिसके साथ सम्पूर्ण जैन समाज की आस्थाएँ और धार्मिक भावनाएँ जुड़ी रहती हैं। इसमें खान-पान और खेलने-कूदने की प्रधानता नहीं रहती; अपितु संयम और तप-त्याग की प्रधानता होती है, वातावरण एकदम आध्यात्मिक बन जाता है। जिसप्रकार हम अपने पारिवारिक पूर्वजों की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए, उनके चित्र अपने घरों में लगाते हैं; अथवा अपने राष्ट्रीय नेताओं की स्मृति बनाये रखने के लिए, उनके चित्र या स्टेच्यू समुचित राष्ट्रीय महत्त्व के स्थानों पर लगाते हैं, स्थापित करते हैं; यथावसर माल्यार्पण आदि के द्वारा उनका सम्मान करते हैं; उसीप्रकार अधिकांश धर्मों में अपने धर्मपूर्वजों, धार्मिक नेताओं, तीर्थंकरों एवं भगवानों की तदाकार मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रतिष्ठापित की जाती हैं। __ जैनधर्मावलम्बी भी तीर्थंकरों की तदाकार मूर्तियाँ जिन-मन्दिरों में प्रतिष्ठापित करते हैं, स्थापित करते हैं। इस परमपावन भारतवर्ष में हजारों जिनमन्दिर हैं और उनमें लाखों जिनबिम्ब (मूर्तियाँ) विराजमान हैं; जिनके
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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