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________________ 60 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव इसीप्रकार भरपेट खाने के बाद आलस का आना स्वाभाविक ही है। अतः जिन मुनिराजों को आहार से लौटने पर ६ घड़ी तक सामायिक करनी है, उन्हें प्रमाद बढ़ाने वाला भरपेट भोजन कैसे सुहा सकता है? जब छात्रों की परीक्षाएँ होती हैं, इसकारण उन्हें देर रात तक पढ़ना होता है तो वे भी शाम का भोजन अल्प ही लेते हैं। इसकारण मुनिराजों का आहार अल्पाहार ही होता है। वे तो मात्र जीने के लिए शुद्ध-सात्विक अल्प आहार लेते हैं । वे आहार के लिए नहीं जीते, जीने के लिए आहार लेते हैं। भरपेट आहार कर लेने पर पानी भी पूरा नहीं पिया जायगा और बाद में प्यास लगेगी। वे तो भोजन के समय ही पानी लेते हैं, बाद में तो पानी भी नहीं पीते। पानी की कमी के कारण भोजन भी ठीक से नहीं पचेगा और कब्ज आदि अनेक रोग आ घेरेंगे। ऐसी स्थिति में आत्मसाधना में भी बाधा पड़ेगी। अतः वे अल्पाहार ही लेते हैं। हाथ में आहार लेने के पीछे भी रहस्य है। यदि थाली में आहार लेवें तो फिर बैठकर ही लेना होगा, खड़े-खड़े आहार थाली में संभव नहीं है। दूसरे थाली में उनकी इच्छा के विरुद्ध भी अधिक या अनपेक्षित सामग्री रखी जा सकती है। जूठा छोड़ना उचित न होने से खाने में अधिक आ सकता है। हाथ में यह संभव नहीं है। यदि किसी ने कदाचित् रख भी दिया तो कितना रखेगा? बस एक ग्रास ही न? पर थाली में तो चाहे जितना रखा जा सकता है। भोजन में जो स्वाधीनता हाथ में खाने में है, वह स्वाधीनता थाली में खाने में नहीं रहती। ___ एक बात यह भी है कि उसमें भक्तगण अपने वैभव को प्रदर्शित किए बिना नहीं रहते। यदि महाराज थाली में खाने लगें तो कोई चाँदी की थाली में खिलायेगा, कोई सोने की थाली में। दिगम्बर वीतरागी भगवान को भी हम सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात से सजाने लगे हैं । यदि दिगम्बर लोग उनके तन पर कोई गहना-कपड़ा नहीं सजा सकते तो वे उनके परिकर को सजावेंगे। छत्र-चमरों के माध्यम से उन्हें
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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