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________________ छठवां दिन 55 बड़ी आई दया दिखाने वाली। अब दिखा दया, अब तो तू भी हमारे - समान ही बेघर हो गई। बोल, अब बोल; अब क्या कहना है तुझे? और भी कोई उपदेश शेष हो तो वह भी दे ले।" । बेचारी चिड़िया चुप रह गई। करती भी क्या? यदि हम दूसरों को सुधारने के विकल्प में अधिक उलझे तो हमारी दशा भी चिड़िया के समान ही हो सकती है। अतः समझदारी इसी में है कि हम अपने कल्याण की ही सोचें। जो लोग सत्य समझना चाहते हों, विनयवंत हों, सरल हृदय हों, उनके अनुरोध पर जो कुछ सत्य जानते हों, अवश्य बताना, समझाना; पर जो लोग सुनना ही न चाहें, समझना ही न चाहें, उन्हें समझाने के विकल्प में समय व शक्ति व्यर्थ गंवाना ठीक नहीं है। इस प्रकार दो बातें हुई। एक तो यह कि नीलांजना की मृत्यु पर जगत का निष्ठर व्यवहार देखकर ऋषभदेव को वैराग्य हो गया और दूसरी बात यह कि ऋषभदेव के साथ चार हजार राजा बिना सोचे समझे ही दीक्षित हो गये। दोनों ही बातों से हमें यह सीखने को मिला कि काललब्धि आये बिना, पर्यायगत योग्यता के परिपाक के बिना, मात्र निमित्तों से वैराग्य नहीं होता और देखा-देखी दीक्षा लेने का भी कोई अच्छा परिणाम नहीं निकलता। अतः हमें अपने परिणामों के परिपाक का प्रयत्न करना चाहिए और जबतक परिणामों का परिपाक पूरी तरह न हो जावे, तबतक देखा-देखी दीक्षा नहीं लेनी चाहिए। अब आहारदान की चर्चा करते हैं। आज दीक्षाकल्याणक का दिन है। दीक्षाकल्याणक का दिन तबतक चलेगा, जबतक कि केवलज्ञान नहीं हो जाता। केवलज्ञान का कार्यक्रम तो कल दोपहर बाद होगा। अतः दीक्षाकल्याणक एक प्रकार से कल दोपहर तक चलेगा। आहारदान का प्रसंग भी कल प्रात: ही दिखाया जायगा। केवली भगवान तो कवलाहार करते नहीं; अत: आहार का प्रसंग केवलज्ञानकल्याणक में कैसे
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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