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________________ 50 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव उनके ध्यान के भंग होने की प्रतीक्षा करते रहे; पर उनका ध्यान भंग न होना था, सो न हुआ। जिन राजाओं ने ऋषभदेव के साथ दीक्षा ली थी, वे मुनिचर्या से पूर्णतः अनभिज्ञ थे; उन्होंने तो ऋषभदेव के भरोसे ही दीक्षा ली थी कि जैसा जो ऋषभदेव करेंगे, वैसा ही हम भी करेंगे। ऋषभदेव के मौन खड़े रहने के कारण वे किंकर्तव्यविमूढ हो गये। उनकी समझ में ही कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करें और क्या न करें? भूख-प्यास सही नहीं जाती थी। आहार लेने की विधि से भी अपरिचित थे। अतः वन में कंद-मूल खाने लगे। उनके इस धर्मविरुद्ध आचरण को देखकर इन्द्र को चिंता हुई कि इस तरह तो युग की आदि में ही मुनिधर्म बदनाम हो जावेगा। अत: इन्द्र ने आकर उन्हें डॉटा-फटकारा तो वे कहने लगे कि हम क्या करें, हमें तो कुछ पता नहीं है और ऋषभदेव मौन धारण किए हुए हैं। यदि मुनिधर्म छोड़कर घर वापिस जाते हैं तो सम्राट भरत से प्रताडना मिलेगी। अतः हम कुछ भी निश्चय नहीं कर पा रहे हैं। अब आप ही बताइये कि हम क्या करें? हम तो वही करेंगे, जो आप बतावेंगे। उनकी इस दीन-हीन किंकर्तव्यविमूढ़ दशा देखकर इन्द्र ने कहा कि तुम यह निर्ग्रन्थ वेश छोड़ दो, फिर चाहे जो करो; क्योंकि निर्ग्रन्थ दशा में इस प्रकार की प्रवृत्ति धर्म को बदनाम करती है। इन्द्र की यह बात सुनकर उन्होंने वल्कलादि धारण कर लिए और कन्दमूलादि भक्षण कर अपना जीवन बिताने लगे। बिना कुछ सोचे-विचारे, मात्र देखा-देखी दीक्षा लेने वाले चार हजार राजाओं की दुर्दशा देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि बिना सम्यग्दर्शन-ज्ञान के चारित्र धारण करने वालों की क्या स्थिति होती है? ___ यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि मुनिराज ऋषभदेव ने ऐसा क्यों किया? या तो उन्हें अपने साथ दीक्षित नहीं होने देना था या फिर उन्हें सम्पूर्ण
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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