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________________ 46 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव क्या यह अनित्य भावना का चिन्तन अशुभ है? नहीं तो मरने की बात अशुभ कैसे हो गई? यह तो वैराग्योत्पादक बात है। यही जानकर पहली ही भावना में इसकी चर्चा की गई है। इस पर वे कहते हैं कि आपकी ऐसी दर्दनाक मौत क्यों हो? पर मेरा कहना यह है कि इससे अच्छी और कौनसी मौत होगी। क्या सड़-सड़ कर, गल-गल कर, वर्षों निष्क्रिय पड़े रहकर मरना अच्छा है? अरे भाई प्रवचन करते-करते मरना ही सबसे अच्छी मौत है। इसमें असंभव भी क्या है? जब एक क्षत्रिय घोड़े की पीठ पर सवारी करता हुआ ही युद्ध के मैदान में मरता है; जब एक बनिया दुकान पर ग्राहक पटाते-पटाते ही मरना चाहता है तो एक पण्डित प्रवचन करते-करते मरे तो कौनसा गजब हो गया? जब हम यह बोलते हैं कि - "चाहे लाखों वर्षों तक जीऊँ, या मृत्यु आज ही आ जावे।" तो उसका क्या अर्थ होता है? यही न कि हम हर समय मरने को तैयार हैं तो फिर किसी भी स्थिति में मरने को अशुभ कैसे कहा जा सकता है? ___ जो भी हो, पर यह बात अत्यन्त स्पष्ट है कि ऋषभदेव को वैराग्य, जगत की इस निष्ठरता और स्वार्थीपन को देखकर ही हुआ था। ___जब नेमिनाथ भगवान विधिनायक होते हैं तो वैराग्य के प्रसंग में नीलांजना का नृत्य न दिखाकर नेमिनाथ की बरात का दृश्य दिखाते हैं। उसके सन्दर्भ में भी एक बात विचारणीय है। कहा जाता है कि बारातियों के भोजन के लिए कुछ पशुओं को बाड़े में बन्द रखा गया था। उन्हें मारकर उनकी भोज्यसामग्री बननी थी। उन पशुओं का बंधन और करुण क्रन्दन सुनकर नेमिनाथ को वैराग्य हो गया। इसमें विचारने की बात यह है कि क्या उस कुल में भी मांस-भक्षणादि कार्य चलते थे, जिसमें तीर्थंकरों का जन्म होता है ? नेमिनाथ के तो गर्भकल्याणक और जन्मकल्याणक भी हो चुके थे। सब जग को विदित हो
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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