SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 38 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव महापुरुषों के मन को जानने के लिए भी उन जैसा ही सूक्ष्म मन चाहिए। देखो, नाभिराय की यह बात कितनी वजनदार है; क्योंकि अभी तो ऋषभदेव को ६३ लाख पूर्व तक गृहस्थी में रहना है, राजकाज संभालना है; अभी से उनके दीक्षित होने की कल्पना उनके वर्तमान मानस का सही आकलन नहीं था। तात्पर्य यह है कि गृहस्थी में रहकर भी ऋषभदेव जैसी तत्त्वरुचि और वैराग्य संभव है। बात तो यहाँ तक पहुँची कि जब राजा ऋषभदेव ८३ लाख पूर्व की आयु को भी पूर्ण कर चुके और दीक्षित नहीं हुए तो इन्द्र को भी यह चिन्ता होने लगी कि ये तो गृहस्थी में ही रमे हैं, इनसे तीर्थ की प्रवृत्ति कब होगी ? अब आयु ही कितनी बची है, बस एक लाख पूर्व । ऐसा कोई प्रयास किया जाना चाहिए, जिससे इन्हें वैराग्य हो, ये दीक्षा ग्रहण करें, इन्हें केवलज्ञान हो, इनकी दिव्यध्वनि खिरे और इनके धर्मोपदेश से धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति हो । यहाँ एक प्रश्न संभव है कि एक लाख पूर्व क्या कम होते हैं ? पर भाई जिनकी ८४ लाख पूर्व आयु हो, उनके लिए तो कम ही हैं। आप कल्पना कीजिए कि उनकी आयु ८४ लाख पूर्व नहीं, ८४ वर्ष की थी, जिसमें ८३ वर्ष समाप्त हो गये, मात्र एक वर्ष बचा। अब आप ही सोचिए कि क्या तीर्थ प्रवर्तन के लिए एक वर्ष पर्याप्त है ? अतः इन्द्र का चिन्तित होना स्वाभाविक ही है। यहाँ बात तो यह चल रही है कि जिन्हें अभी ६३ लाख पूर्व तक गृहस्थी में रहना है, उनकी वृत्ति व प्रवृत्ति देखकर हम यह समझ लें कि ये तो शादी ही न करेंगे, शीघ्र ही दीक्षित होंगे, यह आकलन सही तो नहीं है । जब इन्द्र ने उन्हें वैराग्य दिलाने का उपाय सोचा तो उन्हें विरक्त करने के लिए अल्पायु नीलांजना को भेजा । नीलांजना की चर्चा तो कल दीक्षाकल्याणक के दिन होगी, पर यहाँ तो मात्र इतना बताना है कि ८३ लाख पूर्व की आयु में भी ऋषभ देवांगनाओं का नृत्य देखा करते थे ।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy