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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आप जो पैसा इस पंचकल्याणक में खर्च कर रहे हैं, इन्द्र बनने में कर रहे हैं, मंदिर बनवाने में खर्च कर रहे हैं, साधर्मियों की सेवा में खर्च कर रहे हैं, जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में खर्च कर रहे हैं; यदि यह पैसा इसमें खर्च नहीं करते तो किसमें खर्च करते ? 32 सोचिए, जरा सोचिए न; मकान बनवाने में कर रहे होते, लेट्रिन - बाथरूम में टाइलें जड़वाने में कर रहे होते, भक्ष्याभक्ष भक्षण में कर रहे होते, घूमनेफिरने में कर रहे होते, भोग-विलास में कर रहे होते, पंचेन्द्रियों की विषय सामग्री जुटाने में कर रहे होते, कषायों के पोषण में खर्च कर रहे होते । यहाँ आने से आपके समय का सदुपयोग हो रहा है, शक्ति और श्रम का सदुपयोग हो रहा है, पैसे का भी सदुपयोग हो रहा है, परिणाम भी निर्मल हो रहे हैं, इससे अधिक और क्या चाहिए आपको ? हाँ एक बात अवश्य है कि इतने से ही संतुष्ट मत हो जाइये, अपने भगवान आत्मा को जानने- पहिचानने में भी उपयोग को लगाइये; क्योंकि इस पंचकल्याणक में पधारने का असली लाभ तो निज भगवान आत्मा को जानकर - पहिचान कर, उसी में जमकर - रमकर भगवान बनने की प्रक्रिया स्वयं में आरम्भ कर देने में है । अतः स्वयं भगवान बनने की प्रक्रिया समझने में उपयोग लगाइये। सम्पूर्ण जगत के जीव आत्मकल्याण का मार्ग प्राप्त करें, इस वात्सल्य भावना से ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है और उसके परिणामस्वरूप ही तीर्थंकर के इसप्रकार का योग बनता है कि उनके धर्मोपदेश से लाखों जीव आत्मकल्याण के पावन पथ पर चल पड़ते हैं । उन सौभाग्यशालियों में हम भी सम्मिलित हों - इस मंगल भावना से ही आप सब पधारे हैं; अतः आप सब इस पावन प्रसंग से अपने मन को निर्मल बनाकर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करें - यही मंगल भावना है।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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