SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव थी ? अतः जब दीक्षा की बात आवे तो यही कहना ठीक है कि राजा ऋषभदेव ने दीक्षा ली। दूसरी बात यह भी तो है कि तुम मन में भले ही सोच लो कि हम तो भगवान शब्द का प्रयोग स्वभाव की अपेक्षा कर रहे हैं, पर जगत तो उसे पर्याय की अपेक्षा ही समझता है और इससे एक अनर्थ की परम्परा चल सकती है। जैसे लोग कहते हैं कि भगवान ऋषभदेव ने युग की आदि में लोगों को असि, मसि, कृषि, वाणिज्य आदि में प्रशिक्षित किया। तो क्या भगवान तलवार चलाना भी सिखाते हैं, खेती करना भी सिखाते हैं, व्यापार करना भी सिखाते हैं ? वस्तुतः यह सब तो उन्होंने राजा की अवस्था में ही किया था। अतः यही कहना ठीक है कि राजा ऋषभदेव ने असि, मसि आदि का उपदेश दिया; क्योंकि भगवान का दिया उपदेश तो सर्वग्राह्य होता है तो क्या सभी धार्मिक जनों को असि-मसि आदि कार्य करना आवश्यक है ? क्या ये कार्य धर्मकार्य हैं ? भगवान तो केवल धर्मोपदेश देते हैं, धंधे-पानी का उपदेश नहीं। उनकी जो दिव्यध्वनि खिरी, वही भगवान ऋषभदेव का उपदेश है, उसके पूर्व उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह सब राजा ऋषभदेव की कथनी है, जो मुक्तिमार्ग में आवश्यक नहीं। मुनि दीक्षा लेने के पूर्व जो भी कथनी व करनी है, वह सब राजा ऋषभदेव की मानकर ही विचार करना चाहिए। केवलज्ञान होने के बाद जो दिव्यध्वनि खिरी, वह सब भगवान ऋषभदेव का उपदेश है, जो कि मुक्ति के मार्ग में पूर्णतः आचरणीय एवं माननीय है। ___ गर्भकल्याणक, जन्मकल्याणक एवं दीक्षाकल्याणक के जो उत्सव इन्द्रों द्वारा, देवों द्वारा या नागरिकों द्वारा सम्पन्न होते हैं, उनमें तीर्थंकर प्रकृति निमित्त भी नहीं हैं; क्योंकि कोई भी प्रकृति उदय में आने के पूर्व किसी कार्य में निमित्त नहीं हो सकती। तीर्थंकरों को तीर्थंकर प्रकृति के साथ अविनाभावी रूप से इसप्रकार के अन्य पुण्य का बंध होता है, जो उदय में आकर इन महोत्सवों का निमित्त बनता है।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy