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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव दुःख की बात यह है कि सभी को भगवान का बाप बनना है, भगवान कोई नहीं बनना चाहता । अनन्त आनन्द तो भगवान बनने में है, भगवान के माता-पिता बनने में नहीं। भगवान के माता-पिता बने बिना भी मुक्ति प्राप्त हो सकती है, पर भगवान बने बिना मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है । अत: सभी को भगवान बनने की ही भावना भानी चाहिए। 18 यदि भगवान को अपने आँगन में पधराना है, बुलाना है तो हमें उनके आने योग्य वातावरण बनाना होगा, स्वयं को भी इस योग्य बनाना होगा कि जिनके बीच भगवान पधार सकें। यदि हम अपने को इस योग्य बना सके तो भले ही सिद्धशिला छोड़कर भगवान यहाँ न पधारें, पर हम स्वयं ही भगवान बन जायेंगे, हम में से ही कोई पात्र जीव अपने पौरुष को संभालकर भगवान बन जायगा । यहाँ एक प्रश्न संभव है कि चौथेकाल जैसा वातावरण इस पंचमकाल में कैसे संभव है ? कहाँ से लावें नाभिराय जैसे पिता और मरुदेवी जैसी माता असली सौधर्म इन्द्र तो हमारे पंचकल्याणक में आने से रहा, हमें तो जैसे जो उपलब्ध हैं, उन्हीं में से चुनने हैं और उन्हें ही इन्द्र बनाने हैं, राजा बनाने हैं। हाँ, यह बात तो सही है कि हम चौथे काल को पंचम काल में नहीं ला सकते और न ही नाभिराय और मरुदेवी जैसे माता-पिता ही मिल सकते हैं, पर उनमें शास्त्रानुसार तत्संबंधी न्यूनतम योग्यता तो होनी ही चाहिए। जब हम किसी ऐतिहासिक या पौराणिक नाटक को स्टेज पर प्रस्तुत करते हैं तो हमें तत्कालीन क्षेत्र - काल का वातावरण तो प्रस्तुत करना ही होता है। न सही सदा के लिए और सम्पूर्ण भारतवर्ष का वातावरण उस समय जैसा, पर हमें इस पांडाल के भीतर का वातावरण तो तत्कालीन अयोध्या जैसा बनाना ही होगा, अन्यथा यह पंचकल्याणक असली पंचकल्याणक की असल - नकल भी कैसे होगा ? अपने परिणामों को भी तत्कालीन अयोध्या के नागरिकों जैसे बनाने होंगे। न सही सदा के लिए पर, इन आठ दिनों के लिए तो अपने परिणाम
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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