SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पंचकल्याणक की वे सभी क्रियायें प्रक्रियायें विधिवत् सम्पन्न करते हैं, जो क्रियायें - प्रक्रियायें ऋषभदेव के असली पंचकल्याणक में सौधर्मादि इन्द्रों ने की थीं। 10 -- यह इन्द्रप्रतिष्ठा इसलिए भी आवश्यक है कि यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एक अत्यन्त विशाल और महान महोत्सव है। इसकी पूजा-पाठ और क्रिया-प्रक्रिया में जो व्यक्ति सम्मिलित हो जाता है, वह बीच में इससे अलग नहीं हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति के घर सूआ या सूतक हो जावे तो समस्या खड़ी हो सकती है, पर इस इन्द्रप्रतिष्ठा से उस आठ दिन के लिए उस व्यक्ति का गोत्र ही बदल जाता है, जाति ही बदल जाती है, गति ही बदल जाती है; इस कारण उसे उस सूआ - सूतक का दोष नहीं लगता। अब तो वह इन्द्र बन चुका है, साधारण मानव नहीं रहा है तो मानव परिवार को लगने वाले सूआ - सूतक से वह कैसे प्रभावित हो सकता है ? यहाँ एक प्रश्न संभव है कि यह सब तो नाटक - सा लगता है, पर भाई साहब यह एक प्रकार का नाटक ही तो है; क्योंकि इसमें असली पात्र कहाँ हैं ? इसमें न तो असली तीर्थंकर ऋषभदेव हैं और न असली इन्द्रादि । नाटक में भी तो यही होता है कि पौराणिक ऐतिहासिक असली पात्रों के जीवन में जो कुछ भी घटित हुआ था, उसे स्टेज पर अभिनय के माध्यम से पात्रों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ भी पौराणिक तीर्थंकर महापुरुषों के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को स्टेज पर प्रस्तुत किया जा रहा है। पौराणिक पुरुषों के जीवन को नाटक के रूप में प्रस्तुत करने वालों का भी उद्देश्य यही होता है कि लोग उनके जीवनदर्शन से शिक्षा ग्रहण करें और इसका उद्देश्य भी लगभग यही है । पर इस पंचकल्याणक को नाटक कहने से कुछ लोगों को अटपटा-सा लगता है और वे लोग इस बात पर नाराज भी होने लगते हैं। वे कहते हैं कि आप हमारे इस महान उत्सव को नाटक कहते हो ?
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy