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________________ अजीव अधिकार (आर्या) इति जिनमार्गाम्भोधेरुद्धृता पूर्वसूरिभिः प्रीत्या। षड्द्रव्यरत्नमाला कंठाभरणाय भव्यानाम् ।।५१।। है और एकप्रदेशी है। अत: प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि कालद्रव्यों के प्रदेश हैं ही नहीं या उसका एकप्रदेश है? उत्तरह एकप्रदेशी और अप्रदेशीका एक ही अर्थ है। असंख्यात कालद्रव्यों में से प्रत्येक कालद्रव्य का मात्र एक प्रदेश ही होता है। प्रश्न ह्न यदि एक कालद्रव्य का एक ही प्रदेश होता है तो उसे अप्रदेशी क्यों कहते हैं ? उत्तर ह्न एक से अधिक प्रदेश नहीं है, अनेक प्रदेश नहीं है; यह बतलाने के लिए ही उसे अप्रदेशी कहते हैं। अप्रदेशी में जो 'अ' है, वह अनेकप्रदेशत्व के निषेध के लिए है, एक प्रदेश के निषेध के लिए नहीं। इसप्रकार यहाँ एक प्रदेशी है और अप्रदेशी ह्न दोनों का एक ही अर्थ है कि कालाणु एक प्रदेशी है, अनेक प्रदेशी नहीं ।।३४।। टीका के उपरान्त टीकाकार एक छन्द लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न ( हरिगीत ) आगम उदधि से सूरि ने जिनमार्ग की षद्रव्यमय | यह रत्नमाला भव्यकण्ठाभरण गूंथी प्रीति से||५१|| इसप्रकार जिनमार्गरूपी रत्नाकर में से पूर्वाचार्यों ने प्रीतिपूर्वक छह द्रव्यरूपी रत्नों की माला भव्यजीवों के कण्ठ के आभूषण के रूप में प्रस्तुत की है।। छह द्रव्यों का वर्णन करनेवाली गाथायें रत्न हैं और उन रत्नों को व्यवस्थित रूप में गूंथकर यह रत्नमाला आचार्यदेव ने बनाई है। जो इसे कण्ठ में धारण करेगा, इन गाथाओं को कण्ठस्थ (याद) करेगा; यह गाथाओंरूपी रत्नों की माला उसके कण्ड का आभरण (आभूषण-गहना) बनेगी। इन गाथाओं में प्रस्तुत तत्त्वज्ञान उन भव्यों के कल्याण का कारण बनेगा। ___ यह छन्द मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव द्वारा दिया आशीर्वाद तो है ही, साथ में मार्गदर्शन भी है तथा गाथायें भाव सहित कण्ठस्थ करने की प्रेरणा देनेवाला भी है।।५१।। विगत गाथाओं में षद्रव्य और पंच अस्तिकायों की चर्चा करने के उपरान्त अब इन गाथाओं में उक्त षट् द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या बताते हैं।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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