SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजीव अधिकार ८३ व्यवहारकालस्वरूपविविधविकल्पकथनमिदम् । एकस्मिन्नभ:प्रदेशेयः परमाणुस्तिष्ठति तमन्य: परमाणुर्मन्दचलनाल्लंघयति स समयो व्यवहारकाल: । तादृशैरसंख्यातसमयैः निमिष: अथवा नयनपुटघटनायत्तो निमेषः। निमेषाष्टकैः काष्ठा। षोढशभिः काष्ठाभिः कला। द्वात्रिंशत्कलाभिर्घटिका । षष्ठिनालिकमहोरात्रम् । त्रिंशदहोरात्रैर्मासः । द्वाभ्याम् मासाभ्याम् ऋतुः । ऋतुभिस्त्रिभिरयनम् । अयनद्वयेन संवत्सरः । इत्यावल्यादिव्यवहारकालक्रमः । इत्थं समयावलिभेदेन द्विधा भवति, अतीतानागतवर्तमानभेदात् त्रिधा वा। अतीतकालप्रपञ्चोऽयमुच्यते ह अतीतसिद्धानां सिद्धपर्यायप्रादुर्भावसमयात् पुरागतो ह्यावल्यादिव्यवहारकालः स कालस्यैषां संसारावस्थायां यानि संस्थानानि गतानि तैः सदृशत्वादनन्तः । अनागतकालोप्यनागतसिद्धानामनागतशरीराणि यानि तैः सदृश इत्यामुक्ते: मुक्तेः सकाशादित्यर्थः। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है तू (हरिगीत ) समय आवलि भेद दो भूतादि तीन विकल्प हैं। संस्थान से संख्यातगुण आवलि अतीत बखानिये||३१|| समय और आवलि के भेद से कालद्रव्य दो प्रकार का है और भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल के भेद से तीन प्रकार का है। अतीतकाल, संस्थानों (शरीरों) के और संख्यात आवलि के गुणाकार प्रमाण है। इस गाथा का भाव टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्न “यह व्यवहारकाल के स्वरूप और उसके विविधभेदों का कथन है। एक आकाश के प्रदेश में जो परमाणु स्थित हो; उस परमाणु का दूसरे परमाणु के द्वारा मंदगति से उल्लंघन किये जाने में जितना काल लगता है, उतने काल को समय कहते हैं, समय रूप व्यवहारकाल कहते हैं। ऐसे असंख्य समयों का एक निमिष होता है अथवा आँख मीचने में जितना समय लगता है, उतना समय निमिष है। आठ निमिष की एक काष्ठा होती है। सोलह काष्ठा की कला, बत्तीस कला की घड़ी, साठ घड़ी का दिन-रात, तीस दिन-रात का मास, दो मास की ऋतु, तीन ऋतु का अयन और दो अयन का वर्ष होता है। आवलि आदि व्यवहार का ऐसा क्रम है। इसप्रकार व्यवहार काल समय और आवलि के भेद से दो प्रकार का है अथवा अतीत, अनागत और वर्तमान के भेद से तीन प्रकार का है। अब यहाँ अतीत काल को विस्तार से स्पष्ट करते हैं। भूतकाल में हुये सिद्धों की सिद्धपर्याय के प्रादुर्भाव होने से पहिले बीती हुई अनंत आवलि आदि व्यवहार काल और संसार दशा में बीते हुए अनंत संस्थानों (शरीरों) के बराबर अतीत काल अनंत है । इसीप्रकार अनागत (भविष्य) काल भी अनागत सिद्धों के मुक्त होने तक होनेवाले अनंत शरीरों के समान अनंत है। गाथा का ऐसा अर्थ है।"
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy