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________________ अजीव अधिकार पोग्गलदव्वं उच्चइ परमाणू णिच्छएण इदरेण । पोग्गलदव्वो त्ति पुणो ववदेसो होदि खंधस्स ।। २९।। पुद्गलद्रव्यमुच्यते परमाणुर्निश्चयेन इतरेण । पुद्गलद्रव्यमिति पुन: व्यपदेशो भवति स्कन्धस्य ।। २९ ।। ७७ पुद्गलद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोऽयम् । स्वभावशुद्धपर्यायात्मकस्य परमाणोरेव पुद्गल - द्रव्यव्यपदेश: शुद्धनिश्चयेन । इतरेण व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्धपुद्गलानां पुद्गलत्वमुपचारत: सिद्धं भवति । टीका के अन्त में टीकाकार मुनिराज एक छन्द लिखते हैं, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार हैह्न (दोहा) जिसप्रकार जिननाथ के कामभाव न होय । उस प्रकार परमाणु के शब्दोच्चार न होय ||४२|| जिसप्रकार भगवान जिननाथ में पंचबाण के धारी कामदेव की वार्ता नहीं होती; उसीप्रकार परपरिणति से दूर और शुद्धपर्यायरूप होने से परमाणु को स्कंधपर्यायरूप शब्द नहीं होता । देखो, टीकाकार मुनिराज की जिनभक्ति । कहीं कोई प्रसंग न होने पर भी उदाहरण के रूप में ही सही, वे कामविकार से रहित जिननाथ को याद कर ही लेते हैं । बात तो मात्र यह बतानी थी कि परमाणु अशब्द होता है; पर इस बात को भी वे इस रूप में प्रस्तुत करते हैं कि जिसप्रकार जिननाथ कामविकार से रहित हैं; उसीप्रकार परमाणु शब्दोच्चारण का कारण नहीं है; अतः अशब्द है ।।४२ ॥ में विगत गाथाओं में पुद्गल द्रव्य का व्याख्यान करने के उपरान्त अब इस गाथा पुद्गलद्रव्य के व्याख्यान का उपसंहार करते हैं । गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र ( हरिगीत ) परमाणु पुद्गल द्रव्य है ह्न यह कथन है परमार्थ का । स्कंध पुद्गल द्रव्य है ह्न यह कथन है व्यवहार का ॥२९॥ निश्चयनय से परमाणु को पुद्गलद्रव्य कहा जाता है और व्यवहारनय से स्कंध को पुद्गल द्रव्य कहा जाता है। इस गाथा का भाव टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं ह्र “यह पुद्गल द्रव्य के कथन का उपसंहार है। शुद्धनिश्चयनय से स्वभावशुद्धपर्यायात्मक परमाणु को पुद्गलद्रव्य कहते हैं और व्यवहारनय से विभावपर्यायात्मक पौद्गलिक स्कंध उपचार से पुद्गलद्रव्य सिद्ध होता है । "
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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