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________________ ७४ नियमसार तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये ह्न एयरसवण्णगंधं दोफासं सद्दकारणमसदं । खंधंतरिदं दव्वं परमाणुं तं वियाणाहि ।।१२।। उक्तं च मार्गप्रकाशे त (अनुष्टुभ् ) वसुधान्त्यचतु:स्पर्शेषु चिन्त्यं स्पर्शनद्वयम् । वर्णो गन्धो रसश्चैक: परमाणो: न चेतरे ।।१३।। इसके उपरान्त टीकाकार मुनिराज एक गाथा और एक छन्द उद्धृत करते हैं तथा उसके बाद एक छन्द स्वयं भी लिखते हैं। 'तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये ह्न तथा पंचास्तिकाय नामक शास्त्र में कहा है' ह्न ऐसा लिखकर टीकाकार पद्मप्रभमलधारिदेव जो गाथा उद्धृत करते हैं; उस गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न ( हरिगीत) एक रस गंध वर्ण एवं फास दो जिसमें रहें। वह शब्द का कारण अशब्दी खंद में परमाणु है।।१२।। एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो स्पर्शवाला परमाणु शब्द का कारण है, स्वयं अशब्द है और स्कंध के भीतर है; तथापि द्रव्य है।।१२।। - इसके बाद 'उक्तं च मार्गप्रकाशे ह्न मार्गप्रकाश नामक ग्रंथ में कहा है' ह ऐसा लिखकर जो छन्द प्रस्तुत करते हैं; उसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (हरिगीत ) अष्टविध स्पर्श अन्तिम चार में दो वर्ण इक। रस गंध इक परमाणु में हैं अन्य कुछ भी है नहीं।।१३|| परमाणु में आठ प्रकार के स्पर्शों में अन्तिम चार स्पर्शों में से दो स्पर्श, एक वर्ण, एक गंध और एक रस होता है, अन्य नहीं। पौद्गलिक परमाणु में पाँच रसों में से कोई एक रस, पाँच वर्गों में से कोई एक वर्ण, दो गंधों में से कोई एक गंध और आठ स्पर्शों में से दो स्पर्श ह्न इसप्रकार पाँच गुण होते हैं। ध्यान रहे यहाँ पर्यायों को ही गुण कहा जा रहा है। १. पंचास्तिकायसंग्रह, गाथा ८१ २. मार्गप्रकाश, श्लोक संख्या अनुपलब्ध है।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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