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________________ कलशानुक्रमणिका ४८९ कलश २५३ ३८१ Y शुद्धनिश्चयनयेन शुद्ध तत्त्वं शुद्धात्मानं निजसुखशुद्धाशुद्धविकल्पना १७३ १५७ २२ १७७ २०३ २८८ ५५ २७९ षट्कापक्रमयुक्तानां २९३ २८६ स ५ ४७९ १०४ ३०८ २७४ १२० पृष्ठ कलश १३१ सर्वज्ञवीतरागस्य २८६ सहजज्ञानसाम्राज्य२७१ सहजपरमं तत्त्वं १२८ संज्ञानभावपरिमुक्त संसारघोर४५५ सानन्दं तत्त्वमज्ज १७४ सिद्धान्तोद्घश्रीधवं १७८ सुकविजनपयोजा ४१९ सुकृतमपि समस्तं २११ सुखं दु:ख योनौ २०९ ८४ स्कन्धैस्तैः षट्प्रकारैः ११७ स्मरकरिमृगराजः ३१८ स्वत:सिद्ध ज्ञान २१६ १६० स्वर्गे वास्मिन्मनुज१५८ स्ववशयोगि २५० १६१ स्ववशस्य मुनिन्द्रस्य २५७ १६१ स्वस्वरूपस्थितान् १०३ ३४४ स्वात्माराधनया पुराण- २७० २२७ ४३७ हित्वा भीतिं पशुजनकृतां २६५ vmoramm3rmorror ३२८ ४७ ६ सकलकरणग्रामासद्बोधपोतमधिरुह्य सद्बोधमंडनमिदं समयनिमिषकाष्ठा समयसारसमाधिना समितिरिह यतीनां समितिषुसमीतीयं समितिसमिति समितिसंहतितः सम्यक्त्वेऽस्मिन् सम्यग्दृष्टिस्त्यजति समयग्वर्ती त्रिभुवनगुरुः १७२ orm ormmmon २०० ८८ ८७ ५० ३७९ ३८५ ८९ ९० १७६ ४१० २२० १२७ २८३ ४०१ __धर्म विज्ञान का विरोधी नहीं, किन्तु मार्गदर्शक है। धर्म के मार्गदर्शन में चलनेवाले विज्ञान का विकास विनाश नहीं, निर्माण करेगा। घोड़ा और घुड़सवार एक-दूसरे के प्रतिद्वन्दी नहीं, पूरक हैं; घुड़दौड़ में दौड़ेगा तो घोड़ा ही, जीतेगा भी घोड़ा ही, पर घुड़सवार के मार्गदर्शन बिना घोड़े का जीतना संभव नहीं । दौड़ना तो घोड़े को ही है, पर कहाँ दौड़ना, कब दौड़ना, कैसे दौड़ना ? ह्र इस सबका निर्णय घोड़ा नहीं, घुड़सवार करेगा। योग्य घुड़सवार के बिना घोड़ा उपद्रव ही करेगा, महावत के बिना हाथी विनाश ही करेगा, निर्माण नहीं। जिसप्रकार घोड़े को घुड़सवार और हाथी को महावत के मार्गदर्शन की आवश्यकता है, उसीप्रकार विज्ञान को धर्म के मार्गदर्शन की आवश्यकता है, किन्तु दुर्भाग्य से आज धर्म को अपनी उपयोगिता और आवश्यकता की सिद्धि के लिए विज्ञान का सहारा लेना पड़ रहा है। जो कुछ भी, यदि हमें सुख और शान्ति चाहिए तो धर्म को अपने जीवन का अंग बनाना ही होगा। ह्न आत्मा ही है शरण, पृष्ठ-२६-२७
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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