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________________ शुद्धोपयोग अधिकार आयुषः क्षयेण पुन: निर्नाशो भवति शेषप्रकृतीनाम् । पश्चात्प्राप्नोति शीघ्रं लोकाग्रं समयमात्रेण । । १७६ ।। शुद्धजीवस्य स्वभावगतिप्राप्त्युपायोपन्यासोऽयम् । स्वभावगतिक्रियापरिणतस्य षट्कापक्रमविहीनस्य भगवत: सिद्धक्षेत्राभिमुखस्य ध्यानध्येयध्यातृतत्फलप्राप्तिप्रयोजनविकल्पशून्येन स्वस्वरूपाविचलस्थितिरूपेण परमशुक्लध्यानेन आयुः कर्मक्षये जाते वेदनीयनामगोत्राभिधानशेषप्रकृतीनां निर्नाशो भवति । शुद्धनिश्चयनयेन स्वस्वरूपे सहजमहिम्नि लीनोऽपि व्यवहारेण स भगवान् क्षणार्धेन लोकाग्रं प्राप्नोतीति । (अनुष्टुभ् ) षट्कापक्रमयुक्तनां भविनां लक्षणात् पृथक् । सिद्धानां लक्षणं यस्मादूर्ध्वगास्ते सदा शिवाः ।।२९३।। ( हरिगीत ) फिर आयुक्षय से शेष प्रकृति नष्ट होती पूर्णतः । फिर शीघ्र ही इक समय में लोकाग्रथित हों केवली ॥ १७६ ॥ ४५५ फिर आयुकर्म के क्षय से शेष अघातिकर्मों की प्रकृतियों का भी क्षय हो जाता है और वे केवली भगवान शीघ्र समयमात्र में लोकाग्र में पहुँच जाते हैं। इस गाथा के भाव को टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव इसप्रकार स्पष्ट करते हैंह्न "यह शुद्धजीव को स्वभावगति की प्राप्ति होने के उपाय का कथन है । स्वभावगतिक्रियारूप से परिणत, छह अपक्रम से रहित, सिद्धक्षेत्र के सन्मुख अरहंत भगवान को; ध्यान - ध्येय - ध्याता संबंधी, ध्यान के फल प्राप्ति संबंधी तथा तत्संबंधी प्रयोजनसंबंधी विकल्पों से रहित एवं स्वस्वरूप में अविचल स्थितिरूप परमशुक्लध्यान द्वारा आयुकर्म के क्षय होने पर, वेदनीय, नाम और गोत्र नामक कर्म की प्रकृतियों का सम्पूर्ण नाश होता है । शुद्ध निश्चयनय से सहज महिमावान निज स्वरूप में लीन होने पर भी व्यवहारनय से वे अरहंत भगवान अर्ध क्षण में अर्थात् एक समय में लोकाग्र में पहुँच जाते हैं।" इस गाथा और उसकी टीका में यह कहा गया है कि अन्तिम शुक्ल ध्यान के प्रभाव से आयुकर्म के साथ ही नाम, गोत्र और वेदनीय कर्म का भी नाश हो जाने से अरहंत परमात्मा एक समय में सिद्ध हो जाते हैं, सिद्धशिला में विराजमान हो जाते हैं ।। १७६।। इसके बाद टीकाकार तीन छंद लिखते हैं; उनमें से पहले छंद का पद्यानुवाद इसप्रकार हैह्र दोहा ) छह अपक्रम से सहित हैं जो संसारी जीव । उनसे लक्षण भिन्न हैं सदा सुखी सिध जीव || २९३ ।।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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