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________________ जीव अधिकार (पृथ्वी) क्वचिल्लसति सद्गुणैः क्वचिदशुद्धरूपैर्गुणैः क्वचित्सहजपर्ययैः क्वचिदशुद्धपर्यायकैः । सनाथमपि जीवतत्त्वमनाथं समस्तैरिदं नमामि परिभावयामि सकलार्थसिद्ध्यै सदा ।।२६ ।। णरणारयतिरियसुरा पजाया ते विहावमिदि भणिदा। कम्मोपाधिविवज्जिय पज्जाया ते सहावमिदि भणिदा ।।१५।। परभावों के होने पर भी भगवान आत्मा तो सहज गुण मणियों की खान है, पूर्णज्ञानवाला होने पर भी शद्ध है। ऐसे भगवान आत्मा को जो तीक्ष्णबुद्धिवाला शुद्धदृष्टि पुरुष भजता है; वह पुरुष मुक्तिसुन्दरी का वल्लभ बनता है। इसप्रकार पर गुण-पर्यायों के होने पर भी उत्तम पुरुषों के हृदय-कमल में तो कारण आत्मा ही विराजमान है। स्वयं से उत्पन्न परम-ब्रह्मस्वरूप जिस समयसार (शुद्धात्मा) को तू भज रहा है; हे भव्यशार्दूल! तू उसे और अधिक गहराई से भज; क्योंकि वस्तुत: तू वही है ।।२४-२५॥ (रोला) क्वचित् सद्गुणों से आतम शोभायमान है। असत् गुणों से युक्त क्वचित् देखा जाता है।। इसी तरह है क्वचित् सहज पर्यायवान पर। क्वचित् अशुभ पर्यायों वाला है यह आतम || नित सनाथ होने पर भी जो नित अनाथ है। इन सबसे जो जीव उसी को मैं भाता हैं। सब अर्थों की सिद्धि हेतु हे भविजन जानो। सहज आतमाराम उसी को मैं ध्याता हूँ||२६|| यह जीवतत्त्व क्वचित् तो सद्गुणों से विलास करता दिखाई देता है, क्वचित् अशुद्धगुणों सहित दिखाई देता है, क्वचित् सहज पर्यायों सहित विलसित होता है और क्वचित् अशुद्धपर्यायों सहित दिखाई देता है। इन सबसे सनाथ (सहित) होने पर भी जो इन सबसे अनाथ (रहित) हैं; ऐसे जीवतत्त्व को मैं सकलार्थ की सिद्धि के लिए नमस्कार करता हूँ। यद्यपि यह भगवान आत्मा विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न प्रकार का दिखाई देता है; तथापि इस आत्मा की आराधना सभी प्रकार की सिद्धियों का साधन है॥२६॥
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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