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________________ ४१४ नियमसार उक्त चं षण्णवतिपाखंडिविजयोपार्जितविशालकीर्तिभिर्महासेनपण्डितदेवै: ह्न _ (अनुष्टुभ् ) यथावद्वस्तुनिर्णीतिः सम्यग्ज्ञानं प्रदीपवत् । तत्स्वार्थव्यवसायात्म कथंचित् प्रमितेः पृथक् ।।७३।।' अथ निश्चयपक्षेऽपि स्वपरप्रकाशकत्वमस्त्येवेति सततनिरुपरागनिरंजनस्वभावनिरतत्वात्, स्वाश्रितो निश्चयः इति वचनात् । सहजज्ञानं तावत् आत्मनः सकाशात् संज्ञालक्षणप्रयोजनेन भिन्नाभिधानलक्षणलक्षितमपि भिन्नं भवति न वस्तुवृत्त्या चेति, अत:कारणात् एतदात्मगतदर्शनसुखचारित्रादिकं जानाति स्वात्मानं कारणपरमात्मस्वरूपमपि जानातीति । पर विजय प्राप्त करनेवाले, विशालकीर्ति के धनी महासेन पण्डितदेव ने भी कहा है' ह्न ऐसा लिखकर टीका के बीच में ही एक छन्द प्रस्तुत करते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (हरिगीत ) वस्तु के सत्यार्थ निर्णयरूप सम्यग्ज्ञान है। स्व-पर अर्थों का प्रकाशक वह प्रदीपसमान है।। वह निर्णयात्मक ज्ञान प्रमितिसेकथंचित् भिन्न है। पर आतमा से ज्ञानगुण से तो अखण्ड अभिन्न है।।७३|| वस्तु का यथार्थ निर्णयरूप सम्यग्ज्ञान है। वह सम्यग्ज्ञान दीपक की भाँति स्व और अर्थ अर्थात् परपदार्थों के व्यवसायात्मक (निर्णयात्मक) है तथा प्रमिति से कथंचित् भिन्न है। ___ ध्यान रहे उक्त छन्द में लेखक आत्मद्रव्य और ज्ञान-दर्शन गुणों के स्थान पर सम्यग्ज्ञानरूप पर्याय को स्व-पर प्रकाशक बता रहे हैं।।७३|| टीकाकार मुनिराज पद्मप्रभमलधारिदेव इस छन्द के उपरान्त टीका के शेष भाग को प्रस्तुत करते हैं; जिसका भाव इसप्रकार है ह्न ___"सतत निर्विकार निरंजन स्वभाव में लीनता के कारण निश्चयनय के पक्ष से भी स्वपरप्रकाशकपना है ही; क्योंकि स्वाश्रितो निश्चयः ह निश्चयनय स्वाश्रित होता है' ह्न ऐसा आगम का वचन है। यद्यपि वह सहजज्ञान आत्मा से संज्ञा, लक्षण और प्रयोजन की अपेक्षा भिन्न संज्ञा (नाम), भिन्न लक्षण से जाना जाता है; तथापि वस्तुवृत्ति से अर्थात् अखण्ड वस्तु की अपेक्षा से भिन्न नहीं है। इसकारण से वह सहजज्ञान आत्मगत (आत्मा में स्थित) दर्शन, ज्ञान, सुख और चारित्र आदि को जानता है तथा स्वात्मा अर्थात् कारणपरमात्मा के स्वरूप को भी जानता है।" १. महासेनदेव पण्डित द्वारा रचित श्लोक, ग्रंथ संख्या एवं श्लोक संख्या अनुपलब्ध है।
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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