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________________ ४१० नियमसार (शार्दूलविक्रीडित) स्वात्माराधनया पुराणपुरुषाः सर्वे पुरा योगिनः प्रध्वस्ताखिलकर्मराक्षसगणा ये विष्णवो जिष्णवः। तान्नित्यं प्रणमत्यनन्यमनसा मुक्तिस्पृहो निस्पृहः स स्यात् सर्वजनार्चितांघ्रिकमल: पापाटवीपावकः ।।२७०।। (मंदाक्रांता) मुक्त्वा मोहं कनकरमणीगोचरं हेयरूपं नित्यानन्दं निरुपमगुणालंकृतं दिव्यबोधम् । चेतः शीघ्रं प्रविश परमात्मानमव्यग्ररूपं लब्ध्वा धर्मं परमगुरुत: शर्मणे निर्मलाय ।।२७१।। इसके बाद टीकाकार मुनिराज दो छन्द लिखते हैं, जिसमें से पहले छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्न (ताटक) अरे पुराण पुरुष योगीजन निज आतम आराधन से। सभी करमरूपी राक्षस के पूरी तरह विराधन से।। विष्णु-जिष्णु हुए उन्हीं को जो मुमुक्षु पूरे मन से। नित्य नमन करते वे मुनिजन अघ अटवी को पावक हैं ।।२७०|| पुरातन काल में हुए सभी पुराणपुरुष योगीजन, निज आत्मा की आराधना से, समस्त कर्मरूपी राक्षसों के समुदाय का नाश करके, विष्णु अर्थात् व्यापक सर्वव्यापी ज्ञानवाले और जिष्णु अर्थात् जीतनेवाले जयवन्त हुए हैं; उनको मुक्ति की स्पृहावाला जगत से निष्प्रह जो जीव अनन्य मन से नित्य नमन करता है; वह जीव पापरूपी अटवी को जलाने में अग्नि समान है और उसके चरण कमलों की पूजा सर्वजन करते हैं। ___ इस छन्द में यह कहा गया है कि भूतकाल में जिन पुराणपुरुषों ने अपने भगवान आत्मा की आराधना करके कर्मों का नाश किया है, अनंतज्ञान और अनंतसुख प्राप्त किया है; वे सभी सम्पूर्ण लोक को जानने के कारण सर्वव्यापी विष्णु और कर्मों को जीतने के कारण जिष्णु अर्थात् जयवंत हुए हैं; उन्हें मुमुक्षु जीव नित्य नमन करते हैं। ऐसे जीव पापरूपी भयंकर जंगल को जलानेवाले हैं, पापभावों से रहित हैं।।२७०।। दूसरे छन्द का पद्यानुवाद इसप्रकार है ह्र
SR No.009464
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2012
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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